पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/१५५

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( १२७ ) एक दूसरा पाट दिया है और उसकी शुद्ध व्याख्या इस प्रकार की है कि विंध्यशक्ति उस पाठ के अनुसार क्षत्रिय अर्थात् हिंदू राजा था। टीकाकार ने दूसरा पाठ इस प्रकार दिया है-विंध्यशक्ति- मूर्धाभिषिक्त इति पाठे क्षत्रिय मुख्य इत्यर्थः। इस दूसरे पाठ से यह नहीं सूचित होता कि विंध्यशक्ति भी कैलकिल यवनों में से था। यह भूल बिलकुल स्पष्ट है और इसलिये हुई है कि यवनाः शब्द को मत्स्यपुराणवाली दूसरी पंक्ति के कैलकिलाः शब्द के साथ मिला दिया गया है। यहाँ इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि यह संगत पाठ नहीं है, बल्कि योंही रख दिया गया है । विष्णु पुराण की सभी प्रतियों में टीकाकार को यह उल्लेख नहीं मिला था कि कैलकिल लोग यवन थे। कुछ प्रतियों में उसे यह पाठ बिलकुल मिला ही नहीं था, जैसा कि मि० पारजिटर को भी 'ज' (h) वाली विष्णुपुराण प्रति में नहीं मिला था। जान पड़ता है कि जब आगे चलकर फिर किसी ने विष्णुपुराण का पाठ दोहराया के पाठ के साथ उसका मिलान किया, तब उसने पाठ की उस भूल का सुधार किया जिसमें कैलकिलों को यवनों के साथ मिला दिया गया था। प्रकट यही होता है कि मूल प्रति में इस स्थान पर यवनों का उल्लेख नहीं था और वह बाद में मिलाया गया था। ६ ५६. पुराणों में विंध्यशक्ति के उदय का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि विंध्यशक्ति किलकिला के राजाओं में से था । यह बात स्पष्ट है कि यहाँ पुराणों का अभिप्राय विंध्यशक्ति नागों से है जिनका उस समय किलकिला के साथ बहुत संबंध था, क्योंकि उनका और मत्स्यपुराण १. P. T.पृ० ४८, पाद-टिप्पणी ८२ ।