(१४३ ) निस्संदेह रूप से अर्थ यही है कि बुंदेलखंड और बघेलखंड उसकी अधीनता में आ गए थे। अब प्रश्न यह होता है कि उस समय विंध्य प्रदेश में कौन सा वाकाटक राजा था जिसके अधीनस्थ और करद राजाओं को समुद्रगुप्त ने छीनकर अपने अधीन कर लिया था। उसने जो प्रदेश जीते थे, वे प्रवरसेन के बाद जीते थे और चौथा वाकाटक राजा पृथिवीपेण प्रथम सारे वाकाटक देश पर राज्य करता था और उसके लड़के का विवाह चंद्रगुप्त विक्रमा- दित्य की कन्या के साथ हुआ था । इसलिये समुद्रगुप्त का सम- कालीन वही वाकाटक राजा होगा जो प्रवरसेन के बाद और पृथिवीपेण से पहले हुआ था; और वह राजा रुद्रसेन प्रथम था जिसे हम निश्चित रूप से वही रुद्रदेव कह सकते हैं जो समुद्रगुप्त की सूची में आर्यावर्त का प्रधान राजा था (६ १३६ ) । ६५. परंतु वाकाटकों के इतिहास के संबंध में हमें और बहुत सी बातें तथा सहायता पुराणों से मिलती है। पुराणों में कहा है कि विंध्यशक्ति के वंशजों ने १६ वाकाटक इतिहास के वर्ष तक राज्य किया था और यह भी संबंध में पुराणों के कहा है कि इनमें से ६० वर्षों तक शिशु उल्लेख राजा तथा प्रवरसेन प्रवीर का राज्य रहा; और इसलिये विंध्यशक्ति के राज्य के लिये ३६ वर्ष बचते हैं । दूसरे शब्दों में हम यही बात यों कह सकते हैं कि पुराणों में रुद्रसेन प्रथम से ही इस राजवंश का अंत कर दिया जाता है। इसलिये हम दृढ़तापूर्वक कह सकते हैं कि रुद्रसेन को समुद्रगुप्त का मुकाबला करना पड़ा था और इसी में उसका लोप गया। वायु पुराण और ब्रह्मांड पुराण में कहा गया है कि
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