पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/१७४

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(१४४) साम्राज्य (भूमि' ) ६६ वर्षों के उपरांत दूसरे के हाथ में चली गई थी। वायुपुराण में जहाँ ६० वर्षों का उल्लेख है, वहाँ क्रिया बहुवचन में है, जिससे पता चलता है कि ६० वर्ष का उल्लेख दानों के संबंध में है। उसकी क्रिया (भोक्ष्यन्ति ) द्विवचन में नहीं बल्कि बहुवचन में है जो प्राकृत के नियमों के अनुसार है, जैसा कि मि० पारजिटर ने बतलाया है ( P. T. पृ. ५०, टिप्पणी ३१ ) । भागवत में न तो शिशु राजा का उल्लेख ही है और न उसकी गिनती ही हुई है। जान पड़ता है कि प्रवरसेन की मृत्यु होते ही समुद्रगुप्त ने तुरंत अपना यह अभियान प्रारंभ कर दिया था और प्रयाग या कौशांबी के युद्ध क्षेत्र में रुद्रसेन प्रथम की शक्ति टूट गई थी; और इसी युद्ध में उसके साम्राज्य- संघ के प्रमुख राजा अच्युत और नागसेन की तथा संभवतः गणपति नाग की भी मृत्यु हो गई थी। ६६६. इस प्रकार पुराणों में विंध्यक राजवंश का तो अंत कर दिया गया है, पर गुणों के संबंध में उनमें जो उल्लेख मिलता है, उससे जान पढ़ता है कि उनका वंश तब तक बराबर चला चलता था, क्योंकि गुप्त राजाओं को उन्होंने बिना पूरा गिनाए हो छोड़ दिया है और यह नहीं बतलाया है कि सब मिलाकर उन्होंने कितने दिनों तक राज्य किया था। पुराणों में जो यह कहा है कि विध्यक वाकाटक सम्राटों ने सब मिलाकर ६६ वर्ष तक राज्य किया था, उसका समर्थन वाकाटक शिलालेखों से भी होता है जिनमें पृथ्वीपेण प्रथम के शासन के संबंध में १. मिलायो इलाहाबाद का शिलालेख जिसमें 'पृथिवी' (पंक्ति२४) और 'धरणी' का अर्थ 'भारत' और 'साम्राज्य' है। २. देखो यागे तीसरा भाग ६ १३२ ।