पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/१९२

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(१६२) प्रतियों में इनकी भी नौ ही पीढ़ियों का उल्लेख है। उनके आरंभ या अंत का वर्णन इस प्रकार किया गया-भविष्यंति श्रा मनुक्षयात् (अर्यात् ये लोग तब तक बने रहेंगे जब तक मनु के वंशज इनका क्षय न करेंगे )। और इसका दूसरा अर्थ यह है कि मनुओं का क्षय हो जाने पर ये लोग होंगे। यदि दूसरा अर्थ ही लिया जाय तो इनका उदय मनुओं का अंत होने पर हुआ था; और मनुओं से यहाँ अभिप्राय हारीतीपुत्र मानव्यों से है। और ये उसी वंश के लोग हैं जिन्हें आज-कल की पाठ्य पुस्तकों में चुटु राजवंश कहा जाता है ( देखो चौथा भाग ६ १५७. और उसके आगे) और इस विचार से इनका उदय लगभग सन् २७५ ई० से ठहरता है। अब यदि पहलेवाला अर्थ लिया जाय तो उसका अभिप्राय यह होगा कि बरार के वंश का नाश मानव्य कदंबों ने किया था जो सन् ३४५ ई० के लगभग हुआ होगा। चेटुओं का जो काल-क्रम हुने ज्ञात है (देखो आगे. चौथा भाग) तथा वाकाटकों और गुप्नों का जो कालक्रम हम लोग जानते हैं, उससे ऊपर के दोनों ही अर्थों क मेल मिलता है। यदि हम वायुपुराण का पाठ ठीक मानें तो हमें पहला ही अर्थ ठीक मानना पड़ता है। अर्थात् यह मानना पड़ता है कि चुटु मानव्यों का नाश होने पर नलों का उदय हुआ था । और उनका यह उदय उसी समय हुआ था जब कि विध्यशक्ति के समय में बांध पर विजय प्राप्त की गई थी। शातवाहनों का अंत होने पर जो राज्य बने थे, २ १. 'तावन्त एव' ( इतना ) पाठ के स्थान पर तत एव ( उपरांत) पाठ भी मिलता है। २. पारजिटर P. T. ५१ टिप्पणी २४. भविष्यति मनु (क) शयात् ।