( १६६) वर्ग दक्षिण से उत्तर की ओर अर्थात् दक्षिणी राजपूताने से एक के बाद एक होता हुआ पंजाव तक पहुँचता है और आमीरोंवाला वर्ग सुराष्ट्र से आरंभ होकर गुजरात तक पहुँचता है जिसमें मालवों के दक्षिण के पासवाला प्रदेश भी संमिलित है; और इस वर्ग के देश पश्चिम से पूर्व की ओर एक सीधी रेखा में हैं ($ १४५) । जैसा कि हम आगे चलकर इस ग्रंथ के दूसरे भाग में बतलावेंगे, यह ठीक वही स्थिति है जो पुराणों में आगे चलकर इसके बादवाल गुप्त साम्राज्य के काल के आरंभ में सुराण-अवंती के आभीरों की वतलाई गई है। वाकाटक काल में काठियावाड़ या गुजरात में शक क्षत्रप बिलकुल रह ही नहीं गए थे। वे लोग वहाँ से निकाल दिए गए थे और पुराणों के अनुसार वे लोग केवल कच्छ और सिंध में ही बच रहे थे (तीसरा भाग $ १४८ )। प्रजातंत्री भारत ने, जिसने भार-शिव काल में अपने सिक्के फिर से बनवाने आरंभ किए थे बिना किसी युद्ध के समुद्रगुप्त को सम्राट मान लिया था। बातें तो सब हो ही चुकी थीं; अब तो उनके लिये उन्हें मान लेना भर बाकी रह गया था, और इस प्रकार उन्होंने वे बातें मान भी ली थीं। जब गुप्त सम्राट ने वाकाटक सम्राट का स्थान ग्रहण किया, तब प्रजातंत्री भारत ने स्वभावतः उसी प्रकार गुप्तों का प्रभुत्व मान लिया, जिस प्रकार उन्हाने वाकाटकों का प्रभुत्व मान लिया था। उन्होंने स्वीकृत कर लिया कि गुप्त सम्राट् ही भारत के सम्राट हैं। ६८२. उस समय के दक्षिण भारत का इतिहास इस ग्रंथ में अलग (देखो चौथा भाग ) दिया गया दक्षिण है; परंतु वाकाटकों और गुप्तों का इतिहास तथा दक्षिण के साथ उनके संबंध का ठीक ठीक स्वरूप दिखलाने के लिये पहले से ही यहाँ भी
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