पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/२१०

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( १८०) ६८८. वाकाटकों ने अपनी शासन-प्रणाली भार-शिवों से ग्रहण की थी और वाकाटकों से समुद्रगुप्त ने ग्रहण की थी। पर हाँ, दोनों ने ही अपनी अपनी ओर से वाकाटक शासन-प्रणाली उसमें कुछ सुधार भी किए थे। वाकाटकों की शासन-प्रणाली यह थी कि स्वयं उनके प्रत्यक्ष शासन के अधीन एक बड़ा केंद्रीय राज्य होता था जिसमें दो राजधानियाँ होती थीं। कई उपराज या उप-शासक होते में जिनका पद वंशानुक्रमिक होता था; और कई स्वतंत्र राज्यों का एक साम्राज्य-संघ होता था। भार-शिव प्रणाली में साम्राज्य का चाभीवाला पत्थर राज्य की मेहराब में बाकी ईंटों के समान ही रहता था, पर वाकाटक-प्रणाली में वह एक महत्त्वपूर्ण अंग हुआ करता था। ६८९. वाकाटकों ने अपने संबंधियों के अलग पर अधीनस्थ राजवंश भी स्थापित किए थे। पुराणों के अनुसार प्रवरसेन प्रथम के चार पुत्र शासक थे। महाराज श्रीभीम- अधोनस्थ राज्य और सेन का एक चित्रित शिलालेख गिंजा पहाड़ी के एक गुहा-मंदिर में है। यह पहाड़ी इलाहाबाद से दक्षिण-पश्चिम ४० मील की दूरी पर है। उस शिलालेख पर ५२ वाँ वर्ष अंकित है। जान पड़ता है कि यह भीमसेन कौशांबी का शासक था और संभवतः प्रवरसेन का पुत्र था' । महत्त्व के अधीनस्थ वंशों ( यथा गणपति नाग, सुप्रतीकर ) और साम्राज्य के सदस्यों (प्रजातंत्रों) साम्राज्य १. A. S. R. खंड २१, पृ. ११६, प्लेट ३०, एपिग्राफिया इंडिका, खंड ३, पृ० ३०६, देखो आगे $ १०३ ।