( १८७) अधीन थे और मांधाता के पास कहीं पश्चिमी मालवा में थे। ठीक उसी समय एक और नई विपत्ति उठ खड़ी हुई थी और जान पड़ता है कि इस नई विपत्ति का संबंध भी उसी विद्रोहवाले आंदोलन और स्वतंत्रता प्राप्त करने के प्रयत्न के साथ था। यह प्रयत्न त्रैकूटकों की ओर से हुआ था. और यह एक नया वंश था जो इस नाम से दह्रसेन ने स्थापित किया था। यह हह्रसेन त्रैकूटक अपरांत' का रहनेवाला था जो पश्चिमी खांदेश को ताप्ती नदी और बंबई से ऊपरवाले समुद्र के बीच में था। अपने पुराने स्वामी या सम्राट वाकाटकों की तरह दह्रसेन ने भी अपने वंश का नाम अपने निवास स्थान के नाम पर 'कूटक' रखा था और यद्यपि उसका पिता एक सामान्य व्यक्ति था और उसका नाम इंद्रदत्त था, तो भी दह्रसेन ने अपने नाम के साथ 'सेन' शब्द जोड़ा था और उसके वंशजों ने भी उसी का अनुकरण किया था। विना कोई विजय प्राप्त किए और पहले से ही उसने अश्वमेध यज्ञ भी कर डाला और अपने नाम के सिक्के भी बनवाने आरंभ कर दिए। पर वह जल्दी ही फिर नरेंद्रसेन की अधीनता में आ गया था, क्योंकि सन् ४५६ ई० में वह वाकाटक संवत् का प्रयोग करता हुआ पाया जाता है ($$१०२, १०६)। पुष्यमित्र लोग सन् ४५६ ई० से पहले साम्राज्य-शक्ति के द्वारा १. एपिग्राफिया इंडिका, खंड १०, पृ० ५१ । २. रघुवंश ४. ५८, ५९ रैप्सन कृत C. A. D. पृ० १५६ । साथ ही देखो दह्रसेन के पुत्र व्याघ्रसेन का सन् ४९० ई० वाला शिलालेख, एपिग्राफिया इंडिका, खंड ११, पृ. २१९, जहाँ ये लोग अपरांत के शासक बतलाए गए हैं।
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