( १८८) परास्त हुए थे। नरेंद्रसेन को अपने श्वसुर के राज्य की सहायता भी मिलती थी जो कोंकण अपरांत के बगल में ही था और उस समय या तो ककुस्थ के अधीन था और या उसके पुत्र शांतिवर्मन् के अधीन था और शांतिवर्मन् भी बहुत शक्तिशाली राजा था। ६६३. जान पड़ता है कि नरेंद्रसेन के दो पुत्र थे। बड़ा लड़का पृथिवीषेण द्वितीय था जो उसका उत्तराधिकारी हुआ था और उसके उपरांत देवसेन सिंहासन पर बैठा पृथिवीषेण द्वितीय था; और जब देवसेन ने सिंहासन का और देवसेन परित्याग कर दिया, तब उसका लड़का हरिषेण राज्याधिकारी .हुआ था। देवसेन अपने राज्य संबंधी कर्तव्यों का पालन करने की अपेक्षा सुख और श्रानंद-मंगल में ही अपना समय व्यतीत करना अधिक पसंद करता था । जव गुप्त साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया, तब पृथिवीपेण द्वितीय ने अपने वंश को गिरी हुई दशा से ऊपर उठाने का प्रयत्न करना आवश्यक समझा, और इस प्रयत्न में उसे सफलता भी हुई, क्योंकि हम देखते हैं कि उसके बादवाले राजा के अधिकार में सारा वाकाटक साम्राज्य आ गया था जिसमें कुंतल, त्रिकूट और लाट देश भी सम्मिलित थे। पृथिवीपेण द्वितीय ( सन् ४७०-४८५ ई.) के शासन-काल में ऊपर बतलाए हुए काल-क्रम के अनुसार कठिन विपत्ति का समय वही था, जब कि सन् ४७० ई० के लगभग हूणों का दूसरा आक्रमण हुआ था । गुप्तों के वंश के साथ साथ उसके वंश का भी पतन हुआ ही १. देखो Kadamba Kula पृ० २८ ।
पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/२१८
दिखावट