( १६२) पड़ोस में भी था और आभीरों का पुराना निवास स्थान था। अवंती पुष्यमित्र-वर्ग के अधीन रह चुकी थी। नरेंद्रसेन के समय वह मालव के अंतर्गत मानी जाती थी। प्रवरसेन द्वितीय या प्रभावती गुप्ता के समय कदाचित् गुप्तों ने इसे वाकाटकों को फिर लौटा दिया था । स्कंदगुप्त ने पुष्यमित्र-युद्ध के उपरांत ही सुराष्ट्र में अपनी ओर से एक शासक नियुक्त कर दिया था; और यदि उस समय तक आभीरों और पुष्यमित्रों का पूर्णरूप से लोप नहीं हो गया था, तो उस समय उनका लोप अवश्य ही हो गया होगा जब हरिपेण ने लाट देश को अपने अधीन किया था। वाकाटक साम्राज्य में जो लाट देश आ मिला था, उसका कारण यही था कि गुप्त साम्राज्य का पतन हो गया था। ६६७. दूसरा वाकाटक साम्राज्य इतना अधिक धन-संपन्न था कि हरिपेण के मंत्री ने भी अजंता में पररी वाकाटकों को एक बहुत सुंदर चैत्य बनवाया, जो बहुत संपन्नता और कला सुंदर चित्रों से सजा था। यह अजंता की गुफा नं० १६ है और बहुत ही सुसज्जित है। इसके बनानेवाले ने उचित गर्वपूर्वक कहा है- 'इसमें खिड़कियाँ, घुमावदार साढ़ियाँ, सुंदर बालाखाने, मंजिले और इंद्र की अप्सराओं की मूर्तियाँ, सुंदर खंभे और सीढ़ियाँ आदि है । यह एक सुंदर चैत्य है।" इसी राजमंत्री के वंश के एक और व्यक्ति ने गुफा नं. १३ बनवाई थी, जो घटोत्कच गुफा कहलाती है और जिसमें एक स्थान पर बनानेवाले ने अपने वंश का इतिहास भी अंकित करा दिया है। यह वंश मलाबार के ब्राह्मणों
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