पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/२३०

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( २०० ) ५०.२ ग्रीष्मपक्षे ४ दिवसे १०.२ (आदि)। इसमें के नाम भीमसेन, संवत् लिखने के ढंग और अक्षरों के प्रारंभिक रूप से हमें यही कहना पड़ता है कि भीमसेन का शिलालेख उसी संवत् का है जो संवत् वाकाटक सिक्कों पर व्यव- हृत हुआ है। ईसवी संवत् के साथ उसका मिलान इस प्रकार होगा- संवत् ५२ सन् ३०० ई० ७६ सन् ३२४ ई० १०७-सन् ३४८ ई. इनमें से अंतिम संवत या वर्ष को छोड़कर बाकी दोनों संवत् या वर्ष प्रवरसेन प्रथम के ही शासन-काल में पड़ते हैं। १०४. इस प्रश्न से संबंध रखनेवाली प्रवरसेन प्रथम के बाद के समय की एक मुख्य और निश्चित बात यह है कि, जैसा कि ऊपर बतलाया जा चुका है, गुप्त संवत् और वाकाटक वाकाटकों ने भी कभी गुप्त संवत का व्यव- हार नहीं किया। यहाँ तक कि जिस समय प्रभावती गुप्ता अभिभाविका के रूप में शासन करती थी, उस समय भी उसने संवत का व्यवहार नहीं किया था। १. इस चित्रित शिलालेख का पाठ मैंने एपिग्राफिया इंडिका से लेकर दिया है जो कनिंघम की लीथो में छपी हुई प्रतिलिपि से अच्छा है । मैंने केवल अावश्यक अंश उद्धृत किया है।