(२०१) संवत् का क्षेत्र ६ १०५. डा० फ्लीट ने यह बात मान ली है कि बुंदेलखंड के पास ही एक ऐसे संवत का प्रचार था जिसका आरंभ सन् २४८ हुआ था। गुप्त-काल के दो सन् २४८ ई० वाले राजाओं ने अपने समय का उल्लेख किया है। उनमें से एक ने तो उसके साथ गुप्त संवत् का नाम भी लिखा है, पर दूसरे ने जो संवत दिया है, उसका नाम नहीं दिया है। परिव्राजक महा- राज हस्तिन् ने अपने लेखों में गुप्त संवत १५६, १६३ और १६१ का उल्लेख किया है। परंतु उसके सम-कालीन उच्चकल्प के महा- राज शर्वनाथ ने, जिसके साथ महाराज हस्तिन् ने नौगढ़ रियासत के भूमरा नामक स्थान में सीमा निश्चित करने का एक संभ स्थापित किया था, अपने लेखों में एक ऐसे संवत के १६३. २६७ और २१४ वें वर्ष का उल्लेख किया है जिसका नाम उसने नहीं दिया है। सीमावाले स्तंभों पर इन दोनों शासकों ने इनमें से किसी संवत् का उल्लेख नहीं किया है, बल्कि महामाघ नाम का एक अलग ही संवत्सर दिया है। डा० फ्लीट का कथन है कि यदि शर्वनाथ के दिए हुए वर्षों को हम उसी संवत् का मान लें जिसका आरंभ सन् २४८-२४६ ई० में हुआ था, तो हमें शर्वनाथ के लिये सन् ४६२-६३ ई० और हस्तिन के लिये सन् ४७५ ई० मिलता है। डा० फ्लीट ने सन् १९०५ में (रायल एशियाटिक सोसायटी का जरनल, पृ० ५६६ ) अपने इस मत का परित्याग कर दिया था और कहा था कि ये दोनों ही वर्प गुप्त संवत् के हैं। और इसका कारण उन्होंने यह बतलाया था कि सन् २४८ वाले संवत् का बुंदेलखंड या बघेलखंड १. इंडियन एंटीक्वेरी, खंड १६, पृ० २२७ ।
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