पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/२३५

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( २०५) के जो नकली ताम्रलेख हैं और जो गया तथा नालंदा के ताम्रलेख कहलाते हैं और जो असली ताम्रलेखों की नकल हैं और उन्हें देखकर बनाए गए हैं उन पर शासन-काल या राज्या- रोहण के वर्ष दिए गए हैं। इस संबंध में ध्यान रखने की दूसरी बात यह है कि प्रवरसेन प्रथम ही सम्राट हुआ था और उससे पहले के सम्राटों अर्थात् कुशन सम्राटों का एक स्वतंत्र संवत् था । उन दिनों एक नये साम्राज्य की स्थापना का एक मुख्य लक्षण यह भी हो गया था कि एक नया संवत् चलाया जाय । समुद्रगुप्त ने भी ऐसा ही किया था और उसने भी प्रवरसेन की तरह अपने पिता के राज्याभिषेक के समय से संवत् चलाया था। यह स्पष्ट है कि उसने भी वाकाटकों का ही अनुकरण किया था और उसका उदाहरण हमें एक प्रतिकारी कार्य की भाँति सहायता देता है। इसलिये सन् २४८-४६ वाले संवत् को, जिसका प्रारंभ ५ सितंबर सन् २४८ ई० को हुआ था', हम चेदि का वाकाटक संवत् कहेंगे। १. कीलहान, एपिग्राफिया इंडिका, खंड ६, पृ० १२६ । २. उच्चकल्प के महाराज जयनाथ के वर्ष यदि सन् २४८ ई. वाले संवत् के मान लिए जायँ तो उसके कारी-तल ईवाले ताम्रलेख, जिन पर संवत् १७४ दिया है, सन् ४२२ ई० के ठहरते हैं, और यदि हम बीच में ४५ वर्ष या इसके लगभग का अंतर मान लें तो जयनाथ का पिता व्याघ्र पृथ्वी पेण प्रथम के समय में नवयुवक रहा होगा और उसने अपने