(२१०) ६ १११. गुप्त लोग मगध में किसी स्थान पर सन् २७५ ई. के लगभग प्रकट होते हैं। इनमें का पहला राजा गुप्त' एक करद और अधीनस्थ राजा के रूप में उदित होता गुप्त और चंद्र है । आगे चलकर हम देखते हैं कि आरंभिक गुप्तों का संबंध इलाहाबाद (प्रयाग) और अवध (साकेत ) से था, क्योंकि ऐसा जान पड़ता है कि महाराज गुप्त की जागीर इलाहाबाद के आस- पास कहीं थी। इसी का पुत्र घटोत्कच था और घटोत्कच का पुत्र इस वंश का ऐसा पहला राजा था जिसने अपने वंश के संस्थापक गुप्त का नाम अपने वंश-नाम के रूप में प्रचलित किया था; और तभी से इस वंश के राजा अपने नाम के अंत में "गुप्त" शब्द रखने लगे थे। उसका नाम चंद्र था। कौमुदी महोत्सव में इस चंद्र का प्राकृत नाम चंडसेन मिलता है। जिस समय इस the drama Kaumudi Mahotsava ( कौमुदी महोत्सव नाटक में ऐतिहासिक तथ्य )। २. प्रभावती गुप्ता (पूनावाले प्लेट, एपिग्राफिया इंडिका, १५) ने इसे बहुत ही उपयुक्त रूप से "ग्रादिराज" कहा है । १. चंद्र का जो प्राकृत में चंड हो जाता है, इसके प्रभाव के लिये सातवाहन राजा चंडसाति का वह अभिलेख देखो जो एपिग्राफिया इंडिका, खंड १८, पृ० ३१७ में प्रकाशित हुआ है और श्री चंद्रसाति के सिक्के जिनमें "चंद्र" के स्थान पर "चंड" अंकित है। देखो रैप्सन कृत Coins of Andhras, पृ० ३२ । इसी प्रकार नाम के अंत का जो “सेन" शब्द छोड़ दिया गया है, उसकी पुष्टि इस बात से होती है कि इसी राजा ने बसंतसेन को बसंतदेव कहा है। (देखो
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