पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/२४५

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(२१५) हैं, जिस समाज के गुप्त लोग थे। कारस्करों में गुप्त लोग जिस विशिष्ट उप-विभाग के थे, उसका नाम जारण था प्रभावती गुप्ता के अभिलेख ( पूना प्लेट्स ) में जो गोत्र' शब्द आया है, उसका मतलब जातीय उप-विभाग से ही है। अमृतसर में धारी नाम के एक प्रकार के जाट पाए जाते हैं; और इस "धारी' शब्द की तुलना हम प्रभावती गुप्ता के संस्कृत शब्द 'धारण' से कर सकते हैं। इस बात का पूरा पूरा समर्थन कौमुदी-महोत्सव से भी होता है और चंद्रगोमिन् से भी होता है जो निस्संदेह एक गुप्त ग्रंथकार था। ६ ११३. संभवतः मद्रक जाट उन दिनों बहुत हीन जाति के नहीं समझे जाते थे, क्योंकि यदि वे लोग छोटी जाति के होते तो राजा सुंदरवर्मन् कभी चंद्रसेन को अपना दत्तक बनाने का विचार न करता । जान पड़ता है कि पहले वह चंद्र को ही अपना सारा राज्य देना चाहता था । परंतु जब किसी छोटी रानी के गर्भ से कल्याणवर्मन का जन्म हुआ (कल्याणवर्मन् के संबंध में जो "माताएँ" शब्द का प्रयोग किया गया है, उससे सूचित होता है कि उसकी कई सौतेली माताएँ थीं) तब दत्तक पुत्र और उसे दत्तक लेनेवाले पिता में झगड़ा आरंभ हुआ। प्रजा ने जो उस समय चंद्र का बहुत अधिक विरोध किया था, उसका वास्तविक कारण यही था कि उन दिनों लोग कारस्करों को इसलिये बुरा समझते थे कि वे लोग सनातनी चातुर्वर्णाश्रम के अंतर्गत नहीं थे। महाभारत में मद्रकों को भी इसीलिये निंदनीय माना गया है। उन लोगों में 7. Glossary of Tribes & Castes of the Pan. jab & N. W. Frontier, खंड २, पृ. २३५.