(२२८) साम्राज्य के अधीनस्थ शासकों की संख्या और उनके योग भी दिए हैं। दूसरे शब्दों में यह बात इस प्रकार कही जा सकती है कि उनमें विंध्यशक्ति के पुत्र प्रवीर के शासन-काल तक का इति- हास है और साथ ही नव-नागों का भी इतिहास है; और इन कालों की बातों का वर्णन उनमें बीते हुए इतिहास के रूप में दिया गया है। और इसके उपरांत वे अपने समय के इतिहास का वर्णन आरंभ करते हैं। गुप्तों के समय से लेकर आगे का जो इतिहास वे देते हैं, उसमें न तो वे शासकों की संख्या ही देते हैं और न उनका शासन-काल ही बतलाते हैं। गुप्तों के समय से आगे की जो बातें दी गई हैं, उनसे पता चलता है कि वे परिवार उस समय तक शासन कर रहे थे और इसीलिए वे परिवार गुप्तों के सम-कलीन थे। जैसा कि हम अभी बतलावेंगे, निस्संदेह रूप से पुराणों का यही आशय है कि वे गुप्त साम्राज्य के अधीनस्थ और संयोजक अंग थे। इसमें वे कुछ अपवाद भी रखते हैं उदाहरणार्थ वे गुप्तों के उन सम-कालीनों का भी उल्लेख कर देते हैं जो गुप्त साम्राज्य के अंतर्मुक्त अंग नहीं थे। उनमें दिए हुए व्योरे बिलकुल ठीक हैं और सीमाएँ आदि विशेष रूप से निर्धा- रित हैं । अतः उस समय का इतिहास जानने के लिये वे अमूल्य साधन हैं। और वहीं पहुँचकर वे पुराण रुक जाते हैं, इससे सूचित होता है कि वे उसी समय के लिखे हुए इतिहास हैं; अर्थात् ये दोनों पुराण उसी समय लिखे गए थे जिस समय समुद्र-गुप्त का साम्राज्य वर्तमान था। गुप्तकुल का शासन विंध्यशक्ति के पुत्र प्रवीर के उपरांत प्रारंभ हुआ था और इसलिये पुराणों ने उसी गुप्त-कुल को साम्राज्य का अधिकारी कुल माना है । वाकाटकों तक, जिनमें स्वयं वाकाटक भी सम्मिलित हैं, पुराणों में केवल साम्राज्य-भागी कुलों के वर्णन हैं। विष्णुपुराण
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