पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/२६५

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( २३७ ) तो स्कंदगुप के समय में और या उसके बाद हुई होगी। हम देखते हैं कि विजयनंदिवर्मन के एक उत्तराधिकारी (विजयदेववर्मन् ) ने अश्वमेध यज्ञ भी कर डाला था अर्थात् उसने अपनी पूर्ण स्वतंत्रता की घोषणा भी कर दी थी। यह बात प्रायः निश्चित ही है कि जब परवर्ती वाकाटकों ने कलिंग पर विजय प्राप्त कर ली थी, तब वे गुप्तों के संबंधियों या उत्तराधिकारियों के रूप में भी अपना अधिकार स्थापित करना चाहते थे और देश के इस भाग के स्वामी होने का अपना पुराना अधिकार भी जतलाते थे और उनका यह अधिकार-स्थापन अवश्य ही शालकायनों के मुकाबले में होता होगा। जान पड़ता है कि यह मगध-कुल वही था जिसे समुद्रगुप्त या उसके उत्तराधिकारी ने शासक करद या सामंत वंश के रूप में नियुक्त किया था। ये लोग ब्राह्मण थे जो मगध से वहाँ भेजे गए थे। इस कुल के आरंभिक राजा अपने आज्ञापत्र आदि संस्कृत में प्रचलित करते थे। इस कुल के प्रथम शासक का नाम गुह होगा, क्योंकि वायुपुराण और ब्रह्मांडपुराण में यही नाम आया है। इसका गुहान् या गुहम् रूप (जो विष्णुपुराण में मिलता है) गुह शब्द के मौलिक कर्म कारक का ही अवशिष्ट है, जो इस प्रसंग में वायुपुराण और ब्रह्मांडपुराण में नष्ट हो गया है और इसीलिये उनमें नहीं पाया जाता। लंका में दाठा वंशों ( History of Tooth Relic ) नामक एक ग्रंथ प्रचलित है जिसमें महात्मा बुद्ध के दाँत के सबंध की अनेक अनुश्रुतियाँ हैं । यह ग्रंथ ई० चौथी शताब्दी का बना हुआ माना जाता है । इस ग्रंथ में एक स्थान पर कहा गया है कि कलिंग का एक शासक, जिसका नाम गुह (गुह-शिव ) था, समस्त भारत और उसके बाहर (जंबूद्वीप) के उस सम्राट का करद और सामंत था जो पाटलिपुत्र में