( २३८ ) बैठकर राज्य करता था और वह ब्राह्मण या आर्य-धर्म का उपासक था । जान पड़ता है कि असल में बात यह थी कि गुह उन दिनों समुद्रगुप्त की अधीनता में और उसकी घोर से उस प्रदेश का शासन करता था। ६ १२६ क. गुप्त-साम्राज्य का तीसरा अधीनस्थ अंश विंध्य पर्वत के दक्षिण में था और इसमें नैषध, यदुक, रौशिक और कालतोयक प्रांत सम्मिलित थे। माहिष्मती गुप्त-साम्राज्य का के बिलकुल पड़ोस में ही शौशिक था । दक्खिन प्रांत नैषध तो बरार था और यदुक देवगिरि (दौलताबाद ) था; और इस विचार से हम कह सकते हैं कि साम्राज्य का उक्त प्रांत बालाघाट पर्वत-माला और सतपुडा के बीच में अर्थात् ताप्ती नदी की तराई में था। महाभारत से पता चलता है कालतोय उन दिनों आभारों (गुजरात) और अपरांत के बीच में था। यह प्रांत वाकाटक- साम्राज्य में से लेकर बनाया गया था और इसका शासक कोई १. दाठा वंशो J. P. T. S. १८८४, पृ० १०६, पद ७२-९४ और उसके प्रागे । यथा-"गुह शिवाह्वयो राजा” (७२) "तत्थ राजा महातेजो जम्बू-दीपस्य इस्सरो" (२१)। "तुह्यं सामन्त भूपालो गुह शिवो पनाधुना निन्दतोतादि से देवे छवत्थिम् वन्दते इति" । इसका अाशय यह है कि पाटलिपुत्र के सम्राट से इस बात की शिकायत की गई थी कि कलिंग पर शासन करनेवाला अपना सामन्त एक "मृत 'अस्थि" की पूजा करता है और पार्य-देवताओं की निंदा करता है । २. विल्सन द्वारा संपादित विष्णुपुराण, खंड २, पृ० १६६-१६७ ३. उक्त ग्रंथ, खंड २, पृ० १६५-१६८ ।
पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/२६६
दिखावट