(२३६) मणिधान्यक था जो मणिधान्य का पुत्र या वंशज था' | कदाचित आपस का मन-मुटाव मिट जाने पर यह प्रदेश पृथिवीषेण को दे दिया गया था, क्योंकि पृथिवीषेण ने कुंतल के राजा पर विजय प्राप्त की थी और कुंतल के राजा के साथ उसका प्रत्यक्ष संबंध होने के लिये यह आवश्यक था कि पृथिवीपेण ही इस प्रांत का शासक होता । चंद्रगुप्त द्वितीय के शासन-काल में हम देखते हैं कि वाकाटक लोग बरार में और वहाँ से शासन करते थे। ६ १२७. इसके बाद दक्षिणी भारत का वह प्रांत आता है जिसका शासक कनक नामक एक व्यक्ति था। दक्षिणी स्वतंत्र राज्य यह कनक भी किसी कुल का नाम नहीं है, बल्कि गुह की भाँति व्यक्ति का ही नाम है। यथा- स्त्रीराष्ट्रम् भोजकांश्चैव भोक्ष्यते कनकाह्वयः । (विष्णु और ब्रह्मांड पु०) "कनक नाम का शासक स्त्री-राष्ट्र और भोजकों पर राज्य करेगा । विष्णुपुराण में प्रांतों का और भी पूरी तरह से उल्लेख किया गया है। यथा- १. महाभारत के अनुसार वाटधान्य और मणिधान्य आपस में पड़ोसी थे। दे० विल्सन द्वारा संपादित महाभारत, खंड २, पृ० १६७ ( वाटधान-पाटहान-पाठान )। २. एपि० इ०, खंड९, पृ० २६६ A.S.W.R. खंड पृ०४, १२५ । ३. विष्णुपुराण में इसके लिये "भोक्ष्यति" शब्द पाया है जिसका अर्थ होता है-"शासन करेगा" अथवा "दूसरों से शासन करावेगा।"
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