( २४३ ) थे और उसके राज-मुकुट पर उसके प्रांतीय सामंत चवर करते थे"। कंग को वाकाटक राजा पृथिवीपेण प्रथम ने परास्त किया था और इस पर कंग ने अपने राज-सिंहासन का परित्याग कर दिया था । जान पड़ता है कि यह "कनक' शब्द तामिल 'कंग' का ही संस्कृत रूप है। विष्णुपुराण में इस पौराणिक नाम का एक दूसरा रूप 'कान' भी मिलता है । जान पड़ता है कि जो पृथिवी- पेण उस समय समुद्रगुप्त का सामंत था, वह जब साम्राज्य का अधिकारी हुआ, तब उसने कंग को उपयुक्त दंड दिया था; और .कंग को इसीलिये राज - सिंहासन का परित्याग करना पड़ा था कि वह अपना साम्राज्य स्थापित करना चाहता था और अपने प्रयत्न में विफल हुआ था । ६ १२६. कान अथवा कनक अर्थात् कंग के उदय का समय निश्चित करने में हमें पुराणों से सहायता मिलती है। पहले हमें यह देखना चाहिए कि वह कौन सा समय पौराणिक उल्लेख का था, जब कि पुराण इस अवसर पर गुप्तों समय और कान अथवा और उनके सम-कालीनों का उल्लेख कर रहे थे। यह उनके कालक्रमिक इतिहास का अंतिम विभाग है । उस समय तक मालव, आभीर,श्रावंत्य और शूर (यौधेय) लोग साम्राज्य में अंतर्मुक्त नहीं कानन का उदय १. कदंब-कुल, पृ० १०॥ २. विलसन द्वारा संपादित विष्णुपुराण, खंड ४, पृ० २२१ में हॉल ( Hall ) की लिखी टिप्पणी । ३. देखो श्रागे ६१४६।
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