(२४४) हुए थे और उन्होंने साम्राज्य की अधीनता नहीं स्वीकृत की थी। भागवत में इनका उल्लेख स्वतंत्र राज्यों के रूप में हुआ है। वायुपुराण और ब्रह्मांडपुराण में इनका नाम समुद्रगुप्त के प्रांतों की सूची में नहीं है; और न इन पुराणों ने पंजाब को ही समुद्र- गुप्त के साम्राज्य के अंतर्गत रखा है । उन्होंने आर्यावर्त में केवल गंगा की तराई, अवध और बिहार को ही गुप्तों के अधिकार में बतलाया है। गुप्तों के संबंध में तो यह निश्चित ही है कि वे विंध्यशक्ति के सौ वर्ष बाद हुए थे इसलिये पुराणों का काल- क्रमिक इतिहास सन् ३४८-३४६ पर पहुँचकर समाप्त होता है, और यह ठीक वही समय है जब कि रुद्रदेव अथवा रुद्रसेन वाकाटक की मृत्यु हुई थी। जिस ढंग से पुराणों में नागों का पूरा-पूरा इतिहास दिया गया है और वाकाटक-साम्राज्य तथा उसके उत्तराधिकारी समुद्रगुप के साम्राज्य (जिसका विस्तार वाकाटक-साम्राज्य के ही विस्तार की तरह कोसला, मेकला, आंध्र, नैपध आदि तक था) का पूरा-पूरा उल्लेख किया गया है, उससे सूचित होता है कि उन्होंने अपने काल-क्रमिक इतिहास का यह अंश, जो राजा रुद्रसेन को मृत्यु के साथ समाप्त होता है, वाका- टक राज्य में ही और वाकाटक राजकीय कागज-पत्रों की सहा- यता से ही प्रस्तुत किया था । रुद्रसेन की मृत्यु सन् ३४८-३४६ ईमें हुई थी और गुप्त-कालीन भारत के पौराणिक इतिहास का यही समय है और इसीलिये स्वभावतः पुराणों में समुद्रगुप्त के साम्राज्य का पूरा-पूरा चित्र नहीं दिया गया है और उनमें कहा गया है कि शक या यौन लोग उस समय तक सिंध, पश्चिमी पंजाब और अफगानिस्तान में राज्य कर रहे थे। इसलिये कंग के उदय का काल भी सन् ३४८-३४६ ई. के लगभग ही निश्चित होता है।
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