(२४७) इस वर्ग का सबसे अधिक महत्वपूर्ण व्यक्ति गणपति नाग है। युद्ध का सबसे बड़ा परिणाम यह हुआ था कि पाटलिपुत्र पर समुद्रगुप्त का सहज में अधिकार हो गया था और कोट-वंश का राजा भी युद्ध में पकड़ा गया था। यह युद्ध मुख्यतः मगध पर फिर से अधिकार करने के लिये ही हुआ होगा। स्वयं समुद्रगुप्त ने कोट के वंशज को नहीं पकड़ा था, जो उस समय पाटलिपुत्र का शासक था। इसलिये हम यह मान सकते हैं कि एक सेना ने तो पाटलिपुत्र पर आक्रमण किया होगा अथवा घेरा डाला होगा, और पाटलिपुत्र के अतिरिक्त किसी दूसरे स्थान पर अथवा पाटलिपुत्र से कुछ दूरी पर समुद्रगुप्त ने नागसेन और अच्युत के साथ और कदाचित् गणपति के साथ भी युद्ध किया होगा। अब हमें सिकों से भी और भाव-शतक से भी, जो गणपति नाग के शासन-काल में लिखा गया था (देखो ६३१) यह पता चलता है कि गणपति नाग मालवा का शासक (धारा- धीश) था और उसकी राजधानी पद्मावती में थी और कदा- चित एक दूसरी राजधानी धारा में भी थी । शिलालेख की २१ वीं पंक्ति में अच्युत-नंदी का पूरा-पूरा नाम आया है और अहिच्छत्र में अच्युत का सिक्का भी मिला है, और उस सिक्के पर वही सब चिह्न हैं जो पद्मावती के नाग सिक्कों पर पाए जाते हैं और उसकी बनावट भी उन्हीं सिक्कों की सी है, और इससे यह जान पड़ता है कि वह नागों की ही एक शाखा में से था। नागसेन संभवतः मथुरा के कीर्तिषेण का पुत्र था और १. इस नागसेन को पद्मावती के उस नागसेन से अलग समझना चाहिए जो नागवंश का था और जिसका उल्लेख बाण ने अपने हर्ष- चरित में किया है। क्योंकि पद्मावतीवाले इस नागसेन की मृत्यु किसी
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