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पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/२७६

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( २४० ) मगध तथा पाटलिपुत्र के राजा कल्याणवर्मन का श्वसुर था'। इसी कल्याणवर्मन ने पाटलिपुत्र के चंडसेन को अधिकार-च्युत करके उस पर अपना अधिकार स्थापित किया था और मथुरा के राजा के साथ इसका संबंध था, और इस प्रकार यह नाग-वाका-. टकों के संघ में सम्मिलित था। और भाव-शतक से पता चलता है कि गणपति एक बहुत अच्छा योद्धा और नागों का नेता था; और इसलिये हमें बहुत कुछ संभावना इस बात की जान पड़ती है कि इसी गणपति की अधीनता या नेतृत्व में नागसेन और अच्युतनंदी ने समुद्रगुप्त के साथ जमकर युद्ध किया था। ये लोग पाटलिपुत्र-वालों की सहायता करने के लिये अपने अपने स्थान से चले होंगे। जिस स्थान पर अहिच्छत्र, मथुरा और पद्मावती के राजा या शासक लोग सुभीते से एकत्र होकर समुद्रगुप्त के साथ युद्ध कर सकते थे, वह स्थान कौशांबी या इलाहाबाद हो सकता है और बहुत कुछ संभावना इसी बात की जान पड़ती है कि यह युद्ध कौशांबी में हुआ होगा, क्योंकि पाटलिपुत्र के लिये पुराना राजमार्ग कौशांबी से ही होकर जाता था। कौशांबीवाले स्तंभ में इस विजय की जो घोषणा की गई है, उससे यही अभिप्राय प्रकट होता हुआ जान पड़ता है। प्रशस्ति इसी स्तंभ पर उत्कीर्ण होने को थी, जैसा कि ३८वीं पक्ति में स्पष्ट रूप से कहा गया है- वाहुरयम् उच्छतः स्तम्भः । युद्धक्षेत्र में नहीं हुई थी, बल्कि एक राजनीतिक षड्यंत्र के कारण पद्मावती में ही इसकी मृत्यु हुई थी। इसका कोई सिक्का नहीं मिला है। जान पड़ता है कि यह गुप्तों का कोई अधीनस्थ सरदार था । १. कौमुदी-महोत्सव, अंक ४ ।