(२४६ ) उक्त तीनों शासक या उप-राज युद्ध-क्षेत्र में एक ही दिन (क्षणात् ) मारे गए थे। दूसरा काम ६१३३. यह युद्ध सन् ३४४-४५ ई० में या उसके लगभग और वाकाटक सम्राट प्रवरसेन प्रथम की मृत्यु के उपरांत तुरंत ही हुआ होगा। इस युद्ध के कारण गंगा की तराई का बहुत बड़ा प्रदेश समुद्रगुप्त के अधिकार में आ गया था। अवध तो पहले से ही उसके अधिकार में था और वही उसका केंद्र था। अब उसके राज्य का विस्तार पश्चिम में हरद्वार और शिवालिक तक और पूर्व में यदि बंगाल तक नहीं तो कम से कम इलाहाबाद से भागलपुर तक का प्रदेश अवश्य ही उसके अधीन हो गया था; और पुराणों में जो यह कहा गया है कि पौंडू पर भी उसका अधिकार हो गया था, उससे सूचित होता है कि संभवतः बंगाल भी उसके साम्राज्य में मिल गया था। कदाचित यमुना की तराई को तो उसने उस समय के लिये छोड़ दिया था और मगध में उसने अपनी शक्ति का बहुत अच्छी तरह संघटन किया था और तब वाकाटक साम्राज्य के दक्षिण-पूर्वी भाग पर आक्रमण करना निश्चित किया था। उस समय तक वाकाटकों का केंद्र किलकिला प्रदेश में ही था और उनके साम्राज्य का दक्षिण-पूर्वी भाग उस केंद्र से बहुत दूर पड़ता था। परंतु समुद्रगुप्त के लिये वह छोटा नागपुर से बहुत पास पड़ता था। जान पड़ता है कि वाकाटक लोग अपने कोसला-मेकला प्रांतों का शासन मध्य-प्रदेश में ही रहकर करते थे। यदि हम और सैनिक बातों तथा सुभीतों का ध्यान छोड़ भी दें, तो भी हम कह सकते हैं कि समुद्रगुप्त वाकाटक साम्राज्य के उक्त भाग में केवल गड़बड़ी ही नहीं पैदा कर सकता
पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/२७७
दिखावट