पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/२८५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( २५७ ) था; और इस चालुक्य भीम प्रथम का एक दूसरा ताम्रलेख वेजवादा में पाया गया था । इसी प्रकार कुस्थलपुर भी उसी प्रदेश का कोई जिला या विषय रहा होगा, यद्यपि इसका नाम अभी तक और किसी लेख आदि में नहीं मिला है। कदाचित् कोसल और महाकांतार के शासकों को छोड़कर ये सभी सैनिक सरदार-स्वामिदत्त और विष्णुगोप सरीखे राजाओं से लेकर जिले के अधिकारियों तक जिन पर चढ़ दौड़ने का कष्ट कोई विजेता न उठावेगा-सब एक साथ ही लड़ने के लिये इकडे थे और सबने एक ही युद्धक्षेत्र में खड़े होकर युद्ध किया था। उक्त सूची में नामों का जो क्रम दिया गया है, वह या तो इस बात का सूचक है कि ये सब राजा और जिलों के अधिकारी युद्ध-क्षेत्र में किस क्रम से खड़े हुए थे और या इस बात का सूचक है कि उन्होंने किस क्रम से आत्म-समर्पण किया था । यहाँ उनका महत्त्व शासकों के रूप में नहीं है, बल्कि योद्धाओं और सैनिक नेताओं के रूप में है। जान पड़ता है कि ये लोग दो मुख्य नेताओं की अधीनता में बँटे हुए थे। इनके नामों आगे जो अंक दिए गए हैं, वे इलाहाबादवाले शिलालेख में दिए हुए उनके क्रम के सूचक हैं। (देखो १३५ पृ० २६८ में पाद-टिप्पणी २।) हुए १ (३) कुराल का मण्टराज नेतृत्व करता था (४) स्वामिदत्त और (५) एरंडपल्ली के दमन का २ और (६) कांची का विष्णुगोप नेतृत्व करता था (७) अवमुक्त के नीलराज, () वेंगी के हस्तिवर्मन् , (६) पलक्क के उग्रसेन,