(२६५) और रुद्रसेन की ओर से लड़ने के लिये युद्धक्षेत्र में आया होगा। अथवा यह चंद्रवर्मन उसी वंश के राजा का दूसरा नाम भी हो सकता है। छठा राजा जो समुद्रगुप्त का समकालीन रहा होगा और जिसका नाम वृद्धवर्मन् दिया गया है, उसका उल्लेख लक्खा मंडलवाले शिलालेख (एपि० इं०, खंड १, पृ० १३ के सातवें श्लोक ) में "चंद्र' के नाम से मिलता है। चंद्रवर्मन् इला- हावादवाले शिलालेख के अनुसार नागदत्त का पड़ोसी था और यह म तुरा से और आगे के प्रदेश का शासक रहा होगा, जिसके उत्तराधिकारी की मोहर लाहौर में पाई गई है। अहिच्छत्र और मथुरा के बीच में नागदत्त के लिये कोई स्थान नहीं हो सकता । जो वर्गीकरण -रुद्रसेन-मतिल-नागदत्त-चंदवर्मन्-किया गया है वह भौगोलिक क्रम से है। रुद्रदेव के राज्य के ठीक बाद मतिल का राज्य पड़ता था और नागदत्त का राज्य उससे और आगे पश्चिम में था। और चंद्र वर्मन् का राज्य तो उससे भी आगे पूर्वी पंजाब में था। ६ १४० क. अत्र प्रश्न यह है कि क्या ये तीनों शासक एक ही युद्ध में रुद्र सेन से लड़े थे या अलग अलग लड़े थे। नागदत्त और चंद्रवर्मन कभी रुद्रसेन के पड़ोस में तो थे ही नहीं, हाँ भारतीय इतिहास से हमें इस बात का पता अवश्य लगता है कि राजा और उनके साथी लोग बहुत दूर दूर से चलकर युद्ध करने के लिये जाते थे। अतः जैसी कि हम आशा कर सकते है, यदि हम समझे कि ये तीनों सामंत एक ही युद्ध में रुद्रदेव के साथ मिलकर और उसकी ओर से लड़े थे, तो यह कोई बहुत बड़ी या असंभव बात नहीं है। यह अवश्य ही समुद्रगुप्त का सबसे बड़ा युद्ध रहा होगा क्योंकि उसने लिखा है कि इन राजाओं के साथ होनेवाले इस यद्ध के उपरांत समस्त आटविक राजा मेरे सेवक
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