( २६६ ) हो गए थे। और इसका अय यही होता है कि बुंदेलखंड और बघेलखंड के सभी शासक इस युद्ध में सम्मिलित हुए थे और जब गुप्त सम्राट का पतन हो गया, तब उन लोगों ने समुद्रगुप्त की अधीनत स्वीकृत कर ली। परंतु दोनों पश्चिमी राजाओं या शासकों के संबंध में अधिक संभावना इसी बात की जान पड़ती है कि उनके साथ बाद में मथुरा के पश्चिम में एक दूसरा ही युद्ध हुआ था। पुराणों ( वायु पुराण और ब्रह्मांड पुराण) में रुद्रसेन की मृत्यु के समुद्रगुप्त के साम्राज्य का जो वर्णन दिया गया है ( देखो ६ १२६) उसमें पंजाब का नाम नहीं आया है; और इससे भी यही सूचित होता है कि पश्चिमी भारत में एक दूसरा युद्ध हुआ था। और इस प्रकार बहुत कुछ संभा- वना इसी बात की जान पड़ती है कि साल दो साल बाद आर्यावर्त में एक तीसरा युद्ध भी हुआ था। के समय $ १४१. वाकाटक साम्राज्य पर समुद्रगुप्त ने जो दूसरी चढ़ाई की थी. वह वास्तव में प्रथम आर्यावर्त्त-युद्ध का क्रमागत अंश ही था । ये तीनों बड़े युद्ध वास्तव में एक ऐसे बड़े युद्ध के अंश थे जो कुछ दिनों तक चलता रहा था। इसलिये यह सारा सैनिक कार्य बहुत जल्दी जल्दी किया गया होगा। इसमें समुद्रगुप्त की ओर से जो सैन्य-संचालन हुआ था, वह इतना आर्यावर्त्त-युद्धों का पूर्ण था कि उसमें समुद्रगुप्त को कभी कहीं पराजित नहीं होना पड़ाथा और न कहीं रुकना ही पड़ा था, इसलिये सारी लड़ा- इयाँ तीन ही वर्षों के सैन्य-संचालन-काल [उन दिनों युद्ध अक्तूबर (विजया दशमी) से आरंभ होकर अप्रैल तक ही होते थे] में समाप्त हो गई होंगी। ऊपर हमने जो काल-क्रम निश्चित किया है, समय
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