( २३८ ) हुए बराबर हिमालय पर्वत तक पहुँचते हैं। और इस बीच में वे सभी प्रदेश आ जाते हैं, जिन्हें हम लोग आजकल भूटान, सिकम और नैपाल कहते हैं, और तब वहाँ से होते हुए शिमले की पहा- ड़ियों और काँगड़े ( कर्तृपुर ) तक अर्थात् बंगाल के उत्तर में पड़ने वाली पहाड़ियों (पौंड्र), संयुक्तप्रांत और पूर्वी पंजाब ( माद्रक देश ) तक इनका विस्तार जा पहुँचता है। समुद्रगुप्त के साम्राज्य में जो कत पुर भी सम्मिलित हो गया था, उसका अर्थ यही है कि तीसरे आर्यावर्त्त-युद्ध के परिणामस्वरूप पूर्वी पंजाब भी उसके साम्राज्य में सम्मिलित हो गया। कदाचित् भागवत पुराण से भी यही आशय निकाला जा सकता है। क्योंकि उसमें स्वतंत्र प्रजातंत्री राज्यों की जो सूची दी है, उसमें मद्रक राज्य का नाम नहीं है ( देखो ६ १४६ ) इसके वादवाले शासन-काल में हम देखते हैं कि गुप्त संवत् ८३ (सन् ४०३ ई० ) में गुप्त संवत् का प्रचार शोरकोट ( पुराना शिवपुर ) तक हो गया था, जो चनाव नदी के पूर्वी तट के पास था'। नेपाल का नया लिच्छवी राजा जयदेव प्रथम समुद्रगुप्त का रिश्तेदार होता था; और उसके अधी- नता स्वीकृत करने का यह अर्थ होता है कि भारतवर्ष की ओर हिमालय में जितने राज्य थे, उन सबने अधीनता स्वीकृत कर ली थी। नेपाल में जयदेव प्रथम के शासन-काल में गुप्त संवत् का प्रचार हुआ था । जान पड़ता है कि जयदेव प्रथम के साथ संबंध होने के कारण ही उसके पार्वत्य प्रदेश पर चढ़ाई नहीं की गई थी। यह भी जान पड़ता है कि आगे चलकर समुद्रगुप्त ने समतट को १. एपिग्राफिया इंडिका, खंड १६, पृ० १५ । २. फ्लीट कृत Gupta Inscription की प्रस्तावना, पृ. १३५ । इंडियन एंटोक्वेरी, खंड १४, पृ० ३४५ (३०)।
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