(२७१) के कुशन अधीनस्थ राजाओं के पालद अथवा शालद और शाक सिक्कों से हमें पता चलता है कि उन राजाओं ने अपने यहाँ गुप्त सिक्के प्रचलित कर दिए थे। वे अपने सिक्कों पर समुद्रगुप्त की मूर्ति और नाम अंकित कराते थे और यह प्रथा चंद्रगुप्त द्वितीय के शासन-काल तक प्रचलित थी, क्योंकि हम देखते हैं कि उस समय तक कुशन राजाओं के सिक्कों पर उसकी मूर्ति और नाम अंकित होता था। इन गुप्त राजाओं की पहचान के संबंध में कोई संदेह नहीं हो सकता; क्योंकि उन सिक्कों पर राजाओं की जो मूर्तियाँ दी गई हैं, उनमें वे कुंडल पहने हुए हैं। और कुशन राजा लोग कभी कुंडलों का व्यवहार नहीं करते थे। मुद्राशास्त्र के ज्ञाता पहले ही कह चुके हैं कि ये सिक्के गुप्त-सिक्कों से मिलते-जुलते हैं । कन्यादान (दान और उपायन में बहुत बड़ा अंतर है) शब्द का प्रयोग कुशन सम्राट के लिये ही किया गया है, क्योंकि उन दिनों यह प्रथा थी, बल्कि यों कहना चाहिए कि नियम ही था कि जब कोई बहुत बड़ा प्रतिद्वन्द्वी शासक अपने विजेता के सामने सिर झुकाता था, तब वह उसके साथ अपनी कन्या का विवाह कर देता था। ६ १४४. उस समय सासानी सम्राट शापुर द्वितीय (सन् ३१०-३७६ ई०) था जो कुशन राजा का स्वामी था। उस समय कुशन लोग अफगानिस्तान से "कुशानी - सासानी" सिक्के ढालकर प्रचलित किया करते थे, जो "शोननो शो" कहलाते १. वि. उ० रि० सो० का जरनल, खंड १८, पृ० २०८-२०९ । २. उक्त जरनल, खंड १८, पृ० २०८-२०६ ।
पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/२९९
दिखावट