( २७२ ) थे। कुशन राजा को सासानी सम्राट का जो संरक्षण प्राप्त था और उसके साथ उसका जो घनिष्ठ संबंध था. उसके कारण कुशनों के भारतीय प्रदेशों का (जो सिंधु- सासानी सम्राट और नद के पूर्व में पड़ते थे)। गुप्त सम्राट द्वारा कुशनों का अधीनता अपने साम्राज्य में मिला लिए जाने में स्वीकृत करना किसी प्रकार की बाधा नहीं हो सकती थी। काश्मीर, रावलपिंडी और पेशावर तक कुशन अधीनस्थ राजा लोग गुप्त साम्राज्य के सिक्के अपने यहाँ प्रचलित करके भारतीय साम्राज्य में आ मिले थे। कुशन शाहानुशाही ने जो आत्म-निवेदन किया था, उसके कारण समुद्रगुप्त को उस पर आक्रमण करने का विचार छोड़ देना पड़ा था। परंतु शत्रु ऐसी अवस्था में छोड़ दिया गया था कि वह भारी उत्पात खड़ा कर सकता था क्योंकि आगे चलकर हम देखते हैं कि समुद्रगुप्त की मृत्यु के थोड़े ही दिन बाद शकाधिपति ने विद्रोह खड़ा कर दिया था; और यह विद्रोह संभवतः सासानी सम्राट् शापुर द्वितीय की सहायता से खड़ा किया गया था। समुद्रगुप्त के समय में जो कुशन-राजकुमारी भेंट करने का कलंक कुशनों को अपने सिर लेना पड़ा था, उसका बदला चुकाने के लिये अब गुप्तों से कहा गया था कि तुम ध्रुवदेवी को हमारे सपुर्द कर दो, और इसी के परिणामस्वरूप चंद्र गुप्त द्वितीय को बल्ख तक चढ़ जाने की आवश्यकता हुई थी, जिससे कुशन-राजा और कुशन-शक्ति का १. विसेट स्मिथ कृत Catalogue of Coins in the Indian Museum पृ० ६१ ।
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