पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/३११

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- (२८३) ६ १४७. यह वर्णन यौन शासन का है और उन यवनों का. नहीं है जो इंडो-ग्रीक कहलाते हैं। यह “यौन" शब्द ही आगे चलकर “यवन" हो गया है। ब्रह्मांड पुराण में जहाँ आरंभिक गुप्तों के सम-कालीन राजवंशों और शासकों का वर्णन समाप्त किया है, वहाँ १६६ वें श्लोक के अंतिम चरण में कहा है- तुल्यकालं भविष्यन्ति सर्वे ह्येते महीक्षितः। और इसके उपरांत दूसरे श्लोक (सं० २०० ) में कहा है: अल्पप्रसादा ह्यनृता महाक्रोधा ह्यधार्मिकाः। भविष्यन्तीः यवना धर्मतः कामतोऽर्थतः ।। (इस देश में यवन लोग होंगे जो धर्म, काम और अर्थ से प्रेरित होंगे और वे लोग तुच्छ विचार वाले, झूठे, महाक्रोधी और अधार्मिक होंगे। बस, इसी श्लोक से उस काल की सब बातों का संक्षिप्त वर्णन आरंभ होता है । मत्स्य पुराण में भी, जिसकी समाप्ति सातवाहनों के अंत में होती है, ठीक वही वर्णन है, यद्यपि सब बातें तीन ही चरणों में समाप्त कर दी गई हैं। यथा- भविष्यन्तीः यवनाः धर्मतः कामतोऽर्थतः तैर्विमिश्रा जनपदा आर्या म्लेच्छाश्च सर्वशः। विपर्ययेन वर्तन्ते क्षयमेष्यन्ति वै प्रजाः । 1 १. मिलाश्रो बिहार उड़ोसा रिसर्च सोसाइटी का जरनल, खंड १८, पृ० २०१ में प्रकाशित TheYaunas of the Puranas ( पुराणों के यौन ) शीर्षक लेख । २. अध्याय २७२, श्लोक २५-२६ ।