(२६१) था और जिस प्रकार उन दिनों भारतवर्ष में संस्कृत का पुनरुद्धार हुआ था, उसी प्रकार उन द्वीपों में भी हुआ था। ईसवी दूसरी शताब्दी के जितने राजकीय अभिलेख आदि उत्तर भारत में भी और दक्षिण भारत में भी पाए गए हैं वे सभी प्राकृत में हैं । जिस भद्रवर्मन् ने (जिसे चीनी लोग फान-हाउ-ता कहते थे) चीनी सैनिकों को परास्त किया था ( सन् ३८०-४१० ई०) वह चंद्रगुप्त द्वितीय का समकालीन था। उसका पिता, जो समुद्रगुप्त का समकालीन था, उस समय चीनी सम्राट के साथ लड़ रहा था और उसने भारतीय सम्राट के साथ संबंध स्थापित करना बहुत खुशी के साथ मंजूर किया होगा। भद्रवर्मन् का पुत्र गंगराज गंगा-तट पर कालयापन करने के लिये भारत चला आया था और तब यहाँ से लौटकर फिर चंपा गया था और वहाँ उसने शासन किया था । इस बात का भी उल्लेख मिलता है कि सन् २४५ ई० से ही फनन ( Funan ) के हिंदू राजा का भारतवर्ष के साथ संबंध था। हिंदू उपनिवेशों पर समुद्रगुप्त के समय की इतनी अधिक छाप मिलती है कि इलाहाबादवाले शिलालेख पर हमें प्रा- वश्यक रूप से गंभीरतापूर्वक विचार करना पड़ता है और उतनी ही गंभीरता के साथ विचार करना पड़ता है, जितनी गंभीरता के साथ हम उसमें दिए हुए भारतीय विषयों का विचार करते हैं। समुद्रगुप्त का शासन-काल वही था, जिस काल में फुनन में राजा १. इसका एकमात्र अपवाद उस रुद्रदामन् •का जूनागढ़वाला शिलालेख है जो स्वयं संस्कृत का बहुत बड़ा विद्वान् था और जो निर्वा- चन के द्वारा राज-पद प्राप्त करने के कारण सनातनी हिंदू राजा बनने का प्रयत्न करता था। २. Champa ( चंपा नामक ग्रंथ), पृ० २५-२६ ।
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