( २९२) श्रुतवर्मन राज्य करता था और जब कि वहाँ हिंदुओं के ढंग पर एक नई सामाजिक व्यवस्था स्थापित हुई थी। लगभग उसी समय हम यह भी देखते हैं कि पश्चिमी जावा के हिंदू उपनिवेश में एक शिलालेख संस्कृत में लिखा गया था जो ईसवी चौथी या पाँचवीं शताब्दी की लिपि में था। फा-हियान जिस समय सुमात्रा में पहुंचा था, उस समय से ठीक पहले वहाँ सनातनी हिंदू संस्कृति का इतना अधिक प्रचार हो चुका था कि उसने लिखा था- "ब्राह्मण या आर्य-धर्म के अनेक रूप खूब अच्छी तरह प्रचलित हैं और बौद्ध धर्म इतना कम हो गया है कि उसके संबंध में कुछ कहा ही नहीं जा सकता ( फा-हियान, पृ० ११३ )। फा-हियान ने इस बात की भी साक्षी दी है कि ताम्रलिप्ति, जैसा कि हम ऊपर बतला चुके हैं, समुद्रगुप्त के समय में उसके राज्य में मिला ली गई थीऔर गुप्तों का एक बंदरगाह बन गई थी, और भारतवर्ष तथा लंका के मध्य अधिकांश आवागमन उसी बंदरगाह से होता था। ताम्रलिप्ति के लिये फाहियान को चंपा (भागलपुर ) से जाना पड़ा था, जहाँ उन दिनों राजधानी थी; और इस बात का पूरा-पूरा समर्थन पुराणों के उस कथन से भी होता है जो चंपा-ताम्रलिप्ति के प्रांत के गुप-कालीन संघटन के संबंध में है । फाहियान ने देखा था कि एक बहुत बड़ा व्यापारी जहाज लंका के लिये रवाना हो रहा है । इस १. कुमारस्वामी-कृत History of Indian and Indo. nesian Art. पृ० १८१ [ देखो उसमें उद्धृत की हुई प्रामाणिक लोगों की उक्तियाँ ] और Indian Historical Quarterly ( इंडियन हिस्टारिकल क्वारटरली) १६२५, खंड १, पृ० ६१२ में फिनोट ( Finot ) का लेख ।
पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/३२०
दिखावट