पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/३२१

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(२६३) लंका को उसने सिंहल कहा है (और समुद्रगुप्त ने भी उसे अपने शिलालेख में सिंहल ही कहा है ) और ताम्रलिप्ति जाने के लिये वह भी उसी जहाज पर सवार हुआ था। भारत और लंका का संबंध इतना सहज और नित्य का था कि सैंहलक राजा को विवश होकर समुद्रगुप्त को सम्राट मानना पड़ा था। द्वीपस्थ भारत के लिये भी उत्तरी भारत में ताम्रलिप्ति एक खास बंदरगाप था। ताम्रलिप्ति को जो चंपा के प्रांत में मिला लिया गया था, उसका उद्देश्य यही था कि द्वीपस्थ भारत के उपनिवेशों के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित हो जाय और समुद्रीव्यापार पर नियंत्रण हो जाय' । यह बहुत सोच- समझकर ग्रहण की हुई नीति थी। योंही संयोग-वश लंका तथा दूसरे द्वीपों से जो लोग भारत में आ जाया करते थे, शिलालेख में उनका कोई स्पष्ट और अनिर्दिष्ट उल्लेख नहीं है, बल्कि साम्राज्य- विस्तार की जो नीति जान-बूझकर ग्रहण की गई थी, उसी के परिणामों का उसमें उल्लेख है। $ १५१. कला संबंधी साक्षी से यह बात और भी अधिक प्रमाणित हो जाती है कि गुप्तों का भारतीय उपनिवेशों के साथ संबंध था। कंबोडिया में अनेक ऐसी मूर्तियाँ मिली हैं जो ईसवी चौथी शताब्दी की हैं और जिन पर वाकाटक-गुप्त-कला की छाप दिखाई देती है और गुप्त शैली के कुछ मंदिर भी वहाँ पाए गए हैं । इसी प्रकार यह भी पता चलता है कि बरमा में गुप्त लिपि १. इस देश में कदाचित् दक्षिणी भारत से उतना अधिक सोना नहीं पाया था, जितना द्वीपस्थ भारत से पाया था। द्वीपस्थ भारत में बहुत अधिक सोना उत्पन्न होता था। २. कुमारस्वामी, पृ० १५७, १८२, १८३ ।