( ३११) में जमीन पर पड़ा हुआ था। उसमें चुटु राजा का नाम और वर्णन इस प्रकार दिया हुआ है-वैजयंतीपुर राजा मानव्य सगोत्तो हारितोपुती विण्ड कद्द चुटुकुलानंद सातकरिण। इसी राजा ने अपने महावल्लभ राज्जुक को इस संबंध की आज्ञा भेजी थी। जान पड़ता है कि उसके बाद वाली किसी सरकार ने वह जागीर देवो- त्तर समझकर फिर से किसी को दे दी थी। एक कदंब राजा ने बाद में फिर से “बहुत ही प्रसन्न मन से'.२ (परितुत्येण अर्थात् परितुष्ट होकर ) कोंडमान के एक वंशज को वह जागीर दान कर दी थी जो उस राजा का मामा और कौशिकीपुत्र था। इस दान में पुरानी जागीर तो थी ही. पर साथ ही उसमें बारह नए गाँव भी जोड़ दिए गए थे और उन सब गाँवों के नामों का भी वहाँ अलग-अलग उल्लेख कर दिया गया है; और इस दान का भी उसी खंभे पर सार्वजनिक रूप से उल्लेख कर दिया गया था। पूर्वकालीन दाता ने जो दान किया था, उसका उस खंभे पर इस प्रकार उल्लेख है-शिव (खद) वम्मणा मानव्यसगोत्रोण हारिती- पुतेन वैजयंती-पतिना पुव्व-दत्तित्ति। यहाँ शिबखद वर्मन करण कारक में आया है और इसके विपरीत कदंब राजा प्रथमा में रखा गया है और यह शिवखद वम्मन ही वह पहला राजा था १. E. C. खंड ७, २५१-२५२, अंक २६३-२६४ । २. देखो रायल एशियाटिक सोसाइटी के जरनल, सन् १६०५, पृ० ३०५, पाद-टिप्पणी २ में फ्लीट द्वारा इसका संशोधन । डा. फ्लीट ने यह मानकर कुछ गड़बड़ी पैदा कर दी है कि शिवस्कंद वर्मन् एक कदंब राजा था। परंतु वास्तव में यह चुडु राजा का नाम है जिसे प्रो० रैप्सन ने स्पष्ट कर दिया है । देखो C.A.D,L. I.V.
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