( ३१२) जिसने वह दान किया था (पुव्वदत्त)। इसमें उसके नाम के साथ भी वही उपाधियाँ हैं जो विष्णु-स्कंद शातकर्णि के शिला- लेख में मिलती हैं। उन दिनों नाम के आगे उसका सम्मान बढ़ाने के लिये "शिव" शब्द जोड़ देने की बहुत 'शिव' सम्मान-सूचक है अधिक प्रथा थी। इस राजा की माता का जो शिलालेख बनवसी में उत्कीर्ण हुआ था, उसके अनुसार इस राजा का नाम शिवखदनागरि सिरी था और कन्हेरी में उसकी माता का जो शिलालेख है, उसमें उसका नाम खंड नाग सातक दिया है। इसलिये इसके प्रारंभ का 'शिव' शब्द केवल सम्मान-सूचक है। सात और साति वास्तव में स्वाति शब्द का ही रूप है और पुराणों में यह सात या साति शब्द आंध्रों के कई नामों के साथ आया है। स्वाति का अर्थ होता है-तल- वार । उसकीमाता विष्णुस्कंद की कन्या थी । इसी का नाम विण्हु- कद या विण्हुकद्द भी मिलता है। यह चुटु-कुल का राजा था और बनवसीवाले शिलालेख में इसी को सात-करिण भी कहा गया है। पहला दान स्वयं वैजयंती-पति पारितीपुत्र शिवस्कंद वर्मन् ने नहीं किया था और न उसने उसका उल्लेख ही कराया था, बल्कि उसके दादा विष्णु-स्कंद (विण्टु कद्द ) सातकर्णि ने १. कदंब राजा ने "सात को बदलकर "वर्मन्" कर दिया है अथवा "सात" के बाद ही वर्मन् भी जोड़ दिया है; और यद्यपि उससे पहले तो यह प्रथा नहीं थी, पर हाँ उसके समय में राजा लोग अपने नाम के साथ "वर्मन" शब्द जोड़ लिया करते थे । २. मैं इसे "कड्ड" नहीं बल्कि "कद्द" पढ़ता हूँ। दूसरी पंक्ति में जो "द" है, उसे पहली पंक्ति के मट्टपट्टिदेव और नंद में के, तथा तीसरी पंक्ति के देय्य और दिन्नम् में के "द" के साथ मिलायो ।
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