पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/३५१

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1 राजा माढरिपुत सिरिविरपुरिसदत= = भटिदेवा खंडसागरम्नका कन्या बपिसिरिनिका महादेवी | महादेवी १ कोदबलिसिरि वनवास के महाराज महाराज सिरि बाहुबल (चाटमूल द्वितीय ) छठिसिरि महादेवी (३२३ ) १. इन नामों के संस्कृत रूप इस प्रकार होंगे- विरपुरिसदत = वीरपुरुषदत्त। चान्तिसिरि = शान्तिश्री । हम्मसिरि = भिका हHश्रीका । छठि षष्ठी (कात्यायिनी देवी)। चाट-शात (जिसका अर्थ होता है-प्रसन्न)। डा. हीरानंद शास्त्री ने जो "बाहुबल" पढ़ा है, वह ठीक है। देखो ग्यारहवाँ प्लेट जिसमें वह स्पष्ट चौकोर "ब" है । डा. वोगेल ने जो इसे “एहुवल" पढ़ा है, वह प्लेट को देखने से ठीक नहीं जान पड़ता । प्लेट जी (G) में “ब” का रूप गलत बना है, परंतु उसका पूरा रूप प्लेट एच ( H ) में मिलता है जिसमें वह दो बार पाया है और दोनों बार स्पष्ट "ब" ही है।