( ३२४ ) वीर पुरिसदत्त ने अपनी तीन ममेरी बहनों के साथ विवाह किया था, जिनमें से दो उसी तिथि के शिलालेखों में "महादेवी" कही गई हैं (एपि० ई०, खंड २०, पृ० १६-२०)। इनमें से भटिदेव कदाचित् सबसे बड़ी रानी थी और वह चाटमूल द्वितीय की माता थी। इसके अतिरिक्त राज-परिवार की चार और स्त्रियों ने भी बड़े बड़े दान किए थे, पर शिलालेखों में यह नहीं कहा गया है कि राजा अथवा राज-परिवार के साथ उनका क्या संबंध था। उनके नाम इस प्रकार हैं- १. महादेवी रुद्रधर भट्टारिका उजनिका (अर्थात् उज्जैन से आई हुई) जो एक महाराज की लड़की थी। महाचेतिय से संबद्ध विहार को इसने चांतिसिरि के साथ मिलकर १०७ खंभे और बहुत से दीनार दिए थे। २. एक महातलवरी जो महातलवर महासेनापति विण्हुसिरि की माता और प्रकीयों के महासेनापति महातलवर वासि- टीपुत महाकुंडसिरि की पत्नी थी। ३. चुल चाटसिरिका महासेनापनी जो हिरंजकस के महासे- नापति महातलवर वासिठीपुत खंड चलिकिरेम्मणक की पत्नी थी। वनवास का कोई एक महाराज भी था, जिसे इक्ष्वाकु. राज-परिवार की एक स्त्री ( चाटमूल द्वितीय की बहन ) ब्याही थी। वह या तो चटु राजाओं में अंतिम था और या अंतिम राजाओं में से एक था और उसकी उपाधियों से यह जान पड़ता है कि वह इक्ष्वाकुओं का अधीनस्थ या भृत्य हो गया था। यह स्पष्ट है कि चाटमूल प्रथम पहले सातवाहनों के अधीन एक महा-
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