पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/३८०

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(३५२) नामों के उपरांत मिलता है जिनका उल्लेख राजाओं के रूप में नहीं हुआ है ) और जैसा कि अभी बतलाया जा चुका है, परवर्ती ताम्रलेखों में से एक में यह बात स्पष्ट रूप में कही गई है कि उसे इसलिये राजा का पद दिया गया था कि उसका विवाह नाग सम्राट् की एक राजकुमारी के साथ हुआ था। समस्त पल्लव ताम्रलेखों में वीरकूर्च का नाम केवल एक ही बार दोहराया गया हैं। जिस ताम्रलेख में वीरकोर्च का नाम आया है, उसकी लिपि और शैली बहुत पहले की है। स्कंदवर्मन् द्वितीय के पौत्र के अभिलेख से हमें स्कंदवर्मन् प्रथम के पिता तक के सभी नाम मिल जाते हैं; और इसलिये यह बात स्पष्ट ही है, जैसा कि अभी विवेचन हो चुका है, कि वीरकोर्च का नाम सबसे पहले और ऊपर रखा जाना चाहिए। इस बात में कुछ भी संदेह नहीं हो सकता कि वीरकोर्च पहला राजा था। और उससे भी पहले के नामों के संबंध में जो अनुभूति मिलती है, उसकी अभी तक पुष्टि नहीं हो सकी है। हाँ, इस बात की अवश्य पुष्टि होती है कि वीरकोर्च के पूर्वज नाग सम्राटों के सेनापति थे। और यह बात बिलकुल ठीक है, क्योंकि उनका उदय नाग-काल में हुआ था। वे लोग किसी दक्षिणी राजा के अधीन नहीं थे और जिस आंध्र देश में उनका पहले-पहल अस्तित्व दिखाई देता है, उस आंध देश के आस-पास कहीं कोई दक्षिणी नाग राजा भी नहीं था। हाँ, नागों का साम्राज्य आंध देश के बिलकुल पड़ोस में, मध्यप्रदेश में अवश्य वर्तमान था। १८४. स्कंदवर्मन द्वितीय के बाद की वंशावली की भी इसी प्रकार भली भाँति पुष्टि हो जाती है। विजयस्कंदवर्मन द्वितीय के पुत्रों में एक विष्णुगोप भी था। उसका एक ताम्रलेख