(३५६ ) प्रथम के पुत्र स्कंदवर्मन तृतीय के उपरांत सिंहासन पर बैठा था; परंतु जैसा कि ऊपर बतलाया जा चुका है, वे ताम्रलेख इसलिये जाली हैं कि उनकी लिपि कई सौ वर्ष बाद की है। और उस ताम्र- लेख का कोई विश्वास नहीं किया जा सकता। वेलुरलैयम्वाले अभि- लेख के अनुसार कुमारविष्णु द्वितीय के वंशमेनंदिवर्मन प्रथम हुआ था । सिंहवर्मन् प्रथम की मृत्यु के उपरांत उसका पुत्र स्कंदवर्मन तृतीय सिंहासन पर बैठा था; और जब उसके वंश में कोई न रह गया, तब युवराज विष्णुगोप का पुत्र सिंहवर्मन तृतीय सिंहासन पर बैठा था। यह प्रतीत होता है कि विष्णुगोप ने सिंहासन पर बैठना स्वीकार नहीं किया था। वह राज्य के सब कार-बार तो देखता था, परंतु उसने राजा के रूप में कभी शासन नहीं किया था (६१८७ )। नरसराओपेटवाले ताम्रलेखों (M. E. R. १९१४, पृ० ८२) के अनुसार सिंहवर्मन द्वितीय ने अपने पिता का राज्य प्राप्त किया था। वयलुरवाले स्तंभ- शिलालेख में जो सूची दी है, उससे भी इस बात का समर्थन होता है । बिष्णुगोप द्वितीय के उपरांत स्कंदवर्मन द्वितीयवाली तीसरी शाखा के लोग राज्य के उत्तराधिकारी हुए थे। इनमें से पहले तो बुद्धवर्मन और उसका पुत्र कुमारविष्णु तृतीय सिंहासन पर बैठा था और तब उसके बाद उसका चचेरा भाई नंदिवर्मन राज्य का अधिकारी हुआ था । “सविष्णुगोपे च नरेंद्रदे२ गते ततोऽजायत नंदिवर्मा" का यही अर्थ होता है। १. एपि० इं० १८, १४५; मौलिक सामग्री के रूप में इसका कुछ भी उपयोग नहीं हो सकता, क्योंकि इसमें कई सूचियाँ एक साथ मिला दी गई हैं। २. शुद्ध पाठ वृंदे है।
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