पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/४००

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( ३७२) कारी बना था और जान पड़ता है कि वह विजय या तो उसने पल्लवों के और या मुख्य वाकाटकों के कोंकणिवर्मन् सेनापति के रूप में प्राप्त की थी, जैसा कि उनकी उपाधि "गंग" से सूचित होता है। उसने ऐसे देश पर अधिकार प्राप्त किया था जिस पर सुजनों का निवास था ( स्व-भुज-नव-जय-जनित-सुजन-जनपदस्य ) और उसने विकट शत्रुओं के साथ युद्ध किया था (दारुण अरिगण )। इस राजा के शरीर पर (युद्ध-क्षेत्र के ) व्रण भूषण-स्वरूप थे (लब्ध- ब्रण-भूषणयस्प कावायनसगोत्रस्य श्रीमत् कोंकणिवर्म-धर्म-महा- धिराजस्य )। ६ १६५. उसका पुत्र माधव महाधिराज संस्कृत के पवित्र और मधुर साहित्य का बहुत बड़ा पंडित था और हिंदू नीति-शास्त्र की व्याख्या और प्रयोग करने में बहुत कुशल था ( नीतिशास्त्रस्य वक्तृ-प्रयोक्तृ-कुशलस्य )। ६ १६६. माधव के पुत्र अर्यवर्मन के शरीर पर अनेक युद्धों में प्राप्त किए हुए व्रण आभूषण के स्वरूप थे। यथा- अनेक-युद्ध=ोपलब्ध व्रण-विभूपित-शरीरस्य उसने अपना समय इतिहास के अध्ययन में लगाया था । ६ १९७. गंगों का जो वंशानुक्रमिक इतिहास ऊपर संक्षेप में दिया गया है, उसमें वाकाटक परंपरा की भावना दिखाई देती है। वह इतिहास उस समय से पहले का है जब कि समुद्रगुप्त दक्षिण में पहुंचा था। वह इतिहास संस्कृत में है और प्रारंभिक काल के दस्तावेजों से नकल करके तैयार किया गया है, और इस वाकाटक भावना