पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/४१७

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(३८६) सोचते थे और सोचते हैं कि भारतवर्ष मेरा है। साम्राज्यों को धिक्कार है। सम्राट् राघव के साम्राज्य को धिक्कार है।" इतिहासज्ञ का मुख्य अभिप्राय यहाँ सम्राटों और विजेताओं का तिरस्कार करना है। वह कहता है कि ये लोग ममत्व के फेर में पड़े रहते हैं । परंतु यह कटु संकेत किसकी ओर है ? इतिहा- १. यः कार्तवीर्यो बुभुजे समस्तान द्वीपान् समाक्रम्य हतारिचक्रः । कथाप्रसंगे त्वभिधीयमानः स एव संकल्पविकल्पहेतुः ।।७२।। दशाननाविक्षितराघवाणामैश्वर्यमुद्भासितदिङमुखानाम् । भस्मापि जातं न कथं क्षणेन ? भ्रूभंगपातेन धिगन्तकस्य ॥७३।। [ ऐश्वर्य धिक्-टोकाकार ] कथाशरीरत्वमवाप यद्वै मान्धातृनामा भुवि चक्रवर्ती । श्रुत्वापि तं कोऽपि करोति साधु ममत्वमात्मन्यपि मन्दचेतः॥७॥ भगीरथाद्याः सगरः ककुत्स्थो दशाननो राघवलक्ष्मणौ च । युधिष्ठिराद्याश्च बभूवुरेते सत्यं न मिथ्या क नु ते न विद्मः ॥७॥ २. मिलायो पृथिवीगीता- पृथ्वी ममेयं सफला ममैषा ममान्वयस्यापि च शाश्वतेयम् । यो यो मृतो ह्यत्र बभूव राजा कुबुद्धिरासीदिति तस्य तस्य ।।६१।। विहाय मां मृत्युपथं व्रजंतं तस्यान्वयस्थस्य कथं ममत्वं हृद्यास्पद मत्प्रभवं करोति ।।६२।। पृथ्वी ममैषाशु परित्यजैनम् वदन्ति ये दूतमुखैः स्वशत्रुम् । नराधिपास्तेषु ममातिहासः पुनश्च मूढेषु दयाभ्युपैति ।।६३।। विशेष रूप से समुद्रपार के साम्राज्य की अोर संकेत है; और गुप्तों के साम्राज्य की ही यह एक विशेषता थी कि उसका विस्तार समुद्रपार के भी देशों तक था ।