पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/४२

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( १८ ) राजा था, क्योंकि उक्त लेख में उसके राज्यारोहण का संवत् दिया है, कुशन संवत् नहीं दिया है। कुशनों के समय में सब जगह समान रूप से कुशन संवत् का ही उल्लेख होता था । राजा की उपाधि "स्वामी" ठीक उसी तरह से दी गई है, जिस तरह आरंभिक शातवाहनों के नामों के आगे लगाई जाती थी । यह शब्द सम्राट का सूचक है और हिंदू राजनीति-शास्त्रों से लिया गया था; और मथुरा के शक राजाओं ने भी इसे ग्रहण किया था । उदाहरणार्थ, स्वामी महाक्षत्रप शोडास के शासन-काल के ४रखें वर्ष के आमोहिनीवाले लेख में यह 'स्वामी' शब्द आया है। पर कनिष्क के शासनकाल से मथुरा में इस प्रथा का परित्याग हो गया था। ६१६. जान पड़ता है कि भूतनंदी के समय से, जब कि भागवत के कथनानुसार इस वंश की फिर से स्थापना या प्रतिष्ठा हुई थी, पद्मावती राजधानी पद्मावती बनाई गई थी। वहाँ स्वर्णबिंदु नाम का एक प्रसिद्ध शिवलिंग स्थापित किया गया था और उसके सात सौ वर्ष बाद भवभूति के समय में उसके संबंध में जन-साधारण में यह कहा जाता था (आख्यायते) कि यह किसी मनुष्य द्वारा प्रतिष्ठित नहीं है, बल्कि स्वयंभू है। पवाया नामक स्थान में श्रीयुक्त गरदे ने वह वेदी ढूंढ़ निकाली १ देखो ल्यूडर्स (Luders) की सूची मं० ११०० में पुलुमावि । नहपान के लिये मिलायो सूची नं० ११७४; देखो आगे ६२६ (क)। २ A. S. R. १६१५-१६ पृ० १०० की पाद-टिप्पणी । पद्मावती के वर्णन के लिये देखिए खजुराहो का शिलालेख E. I. पहला