(१६) है जिस पर स्वर्णबिंदु शिवलिंग स्थापित था। वहाँ एक ऐसा नंदी भी मिला है जिसका सिर तो साँड़ का है और शरीर मनुष्य का है; और साथ ही गुप्र शैली की कई मूर्तियाँ भी पाई गई हैं। ६ १७. अब हम उन सिक्कों पर कुछ विचार करते हैं जो हमारी समझ में इस आरंभिक नाग वंश के हैं। इनमें से कुछ सिक्के साधारणतः मथुरा के माने नाग के सिक्के जाते हैं। ब्रिटिश म्यूजियम में शेषदात, रामदात' और शिशुचंद्रदात के सिक्के हैं। शेषदात-वाले सिक्के की लिपि सबसे पुरानी है और वह ईसापूर्व खंड, पृ० १४६ । यह वर्णन (सन् १०००-१ ई० ) उद्धृत करने के योग्य है। यह इस प्रकार है-"पृथ्वी-तल पर एक अनुपम (नगर) था जो ऊँचे ऊँचे भवनों से शोभित था और जिसके संबंध में यह लिखा मिलता है कि इसकी स्थापना पृथ्वी के किसी ऐसे शासक और नरेंद्र के द्वारा स्वर्ण और रजत युगों के बीच में हुई थी जो पद्म वंश का था । ( इस नगर का ) इतिहासों में उल्लेख है (और ) पुराणों के ज्ञाता लोग इसे पद्मावती कहते हैं । पद्मावती नाम की इस परम सुंदर ( नगरी ) की रचना एक अभूतपूर्व रूप से हुई थी। इसमें बहुत बड़े बड़े और ऊँचे भवनों की बहुत सी पंक्तियाँ थीं; इसके राजमार्गों में बड़े बड़े घोड़े दौड़ते थे; इसकी दीवारें कांतियुक्त, स्वच्छ, शुभ्र और गगन-चुंबी थीं; यह अाकाश से बातें करती थी और इसमें ऐसे बड़े बड़े स्वच्छ भवन थे जो तुषार मंडित पर्वत की चोटियों के समान जान पड़ते थे।" १ मि० कारले को इंदौरखेडा में राम ( रामस) का एक ऐसा सिक्का मिला था जिसके अंत में "दात" शब्द नहीं था । A.S.R., खंड १२, पृ० ४३.
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