पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/४४

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( २० ) पहली शताब्दी की है। उसी वर्ग में रामदात के सिक्के भी हैं। मेरी समझ में ये तीनों राजा इस वंश के वही राजा हैं जो शेषनाग रामचंद्र और शिशुनंदी के नाम से प्रसिद्ध हैं। ये तीनों अपने सिक्कों के कारण परस्पर संबद्ध हैं और यह बात पहले से ही मानी जा चुकी है। जैसा कि प्रो० रैप्सन ने बतलाया है (जनरल रायल एशियाटिक सोसाइटी, १६००, पृ० ११५), शेप और शिशु के सिक्कों का वीरसेन के सिक्को के साथ घनिष्ठ संबंध है। वीरसेन के जिस सिक्के का चित्र प्रो० रैप्सन ने दिया है, इसमें राज-सिंहासन के पीछे एक खड़े हुए नाग का चित्र है ,राज-सिंहासन पर बैठी हुई स्त्री की मूर्ति है, जो अपने ऊपर उठाए हुए दाहिने हाथ में एक घड़ा लिए हुए है। यह मूर्ति गंगा की जान पड़ती है। वीरसेन का एक और सिक्का है जिसका चित्र जनरल कनिंघम ने दिया है। उसमें एक पुरुष की मूर्ति के पास खड़े हुए नाग का चित्र है। नव नाग के सिक्कों के ढंग पर ( देखो ६ २०) इस नाग की मूर्ति के योग से “वीरसेन नाग" का नाम पूरा होता है । मूर्ति वीरसेन की है और उसके आगे का नाग इस बात का सूचक है कि वीरसेन "नाग' है। नाग सिक्कों पर मुख्यतः वृष या नंदी, नाग या साँप और त्रिशूल के चित्र ही पाए जाते हैं। ६१८. अब तक लोग यही मानते रहे हैं कि शिशुचंद्रदात, शेषदात और रामदात में जो 'दात" शब्द है वह भी "दत्त" १ रैप्सन-जरनल रायल एशियाटिक एशियाटिक सोसाइटी, १६००, पृ० १०६ । २ J. R. A. S. १६००, पृ० ९७ के सामने का प्लेट, चित्र सं० १४ ।