पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( २१ ) शब्द के हो समान है। पर यह बात ठीक नहीं है। यह "दात" वस्तुतः दातृ या दात्व शब्द के समान है (जैसा कि शिशुचंद्रदात में स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है और जिसका अर्थ है-उदार, बलि चढ़ानेवाला, रक्षक और दाता)। हमारे इस कथन का एक और प्रमाण यह भी है कि इस प्रकार के कुछ सिक्कों में केवल “रामस' शब्द भी आया है, जिसके आगे दात नहीं है। ६ १६. इसके अतिरिक्त उत्तमदात और पुरुपदात के तथा कामदात और शिवदात के भी सिक्के हैं जिनका उल्लेख प्रो. रैसन ने (जनरल रायल एशियाटिक सोसाइटी १६००, पृ० १११ में कामदत्त और शिवदत्त के नाम से किया है) और भवदात के भी सिक्के हैं (जिनका चित्र जनरल रायल एशियाटिक सोसाइटी, १६००, पृ० ९७ के प्लेट नं० १३ में है) जिसे प्रो० रैप्सन ने भी मदत्त पढ़ा है, पर जो वास्तव में भवदात है। फिर उन राजाओं के भी सिक्के हैं जिनके नाम पुराणों में नहीं आए हैं। ऐसे राजाओं में एक राजा "शिवनंदी" भी है जिसका उल्लेख पवायावाले शिलालेख में है और जिसके संबंध में अब हम सहज में कह सकते हैं कि यह वही सिक्कोंवाला शिवदात है। ६ २०. इस प्रकार हमें इस राजवंश के नीचे लिखे राजाओं के नाम मिलते हैं जिनके निम्नलिखित क्रमबद्ध सिक्के भी पाए जाते हैं- १ A. S. I, खंड १२, पृ० ४३ । २ विसेंट स्मिथ C. I. M., पृ० १६०, १९२ । ३मिलाश्रो विंसेंट स्मिथ. C. I. M.. ५०१०३ ।