(४० ) लिए थे। जानखट-बाला शिलालेख स्वयं उसी के राज्यारोहण- संवत का है'; पर कुशन शासन-काल में सब जगह कुशन संवत् लिखने की ही प्रथा थी। शिवनंदी के शिलालेख में भी स्वामिन् शब्द का प्रयोग किया गया है। और हिंदू धर्मशास्त्रों तथा राजनीति- शास्त्रों के अनुसार (मनु ६, २६४, ७, १६७; ) इसका अर्थ होता है, देश का सबसे बड़ा राजा या महाराज। वीरसेन ने जिस प्रकार अपने सिक्कों में फिर से हिंदू पद्धति ग्रहण की थी उसी प्रकार यहाँ अपनी उपाधि देने में भी उसने उसी सनातन पद्धति का अवलंबन किया था। कुशनों में जो बड़ी बड़ी राजकीय कुशन संवत् ४ के लेखों के अक्षरों में भी उनका ऊपरी भाग कुछ मोटा ही मिलता है । ( देखिए Epigraphia Indica, भाग २ में पृ० २०३ के सामनेवाले प्लेट में का लेख नं. ११ और उससे भी पहले का अयोध्यावाला शुग शिलालेख जो मैंने संपादित करके J. B. O. R. S. खंड १०, पृ. २०२ में छपवाया है और E. I. खंड २, पृ० २४२ में प्रकाशित पभोसावाले शिलालेख, जिन्हें सभी लोगों ने ई० पू० शताब्दियों का माना है । ) उनका यह मत है कि इस शिलालेख में की मात्राएँ ऊपर की ओर कुछ अधिक उठी हुई हैं; पर यह मत इसलिये बिलकुल नहीं माना जा सकता कि E. I., खंड २ में पृ० २४३ के सामनेवाले प्लेट में पभोसा का जो शिलालेख है, उसकी पहली पंक्ति में 'T' की सभी मात्राएँ ऐसी हैं और इसी प्रकार के दूसरे बहुत से उदाहरण भी दिए जा सकते हैं। डा० विंसेट स्मिथ ने यह मानने में भूल की थी कि इसका समय कुशन संवत् ११३ है ( C. I. M. पृ० १९२); और सर रिचर्ड बन ने उसे जो १३ पढ़ा था, वह बहुत ठीक पढ़ा था ।
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