( ५२ ) की ओर चलते हैं, वे कंतित' के उस पुराने किले के पास आकर पहुँचते हैं जो मिरजापुर और विंध्याचल के कस्बों के बीच में है। जान पड़ता है कि यह कंतित वही है जिसे विष्णु की कांतिपुरी कहा गया है। इस किले के पत्थर के खंभे के एक टुकड़े पर मैंने एक बार आधुनिक देवनागरी में कांति लिखा हुआ देखा था। यह गंगा के किनारे एक बहुत बड़ा और प्रायः एक मील लंबा मिट्टी का किला है जिसमें एक बड़ी सीढ़ीनुमा दीवार है और जिसमें कई जगह गुप्त काल की बनी पत्थर की मूर्तियाँ' या उनके टुकड़े आदि पाए जाते हैं। यह किला आजकल कंतित के राजाओं की जमींदारी में है जो कन्नौज और बनारस के गाहड़वाल राजाओं के वंशज हैं। मुसलमानों के समय में यह किला नष्ट कर दिया गया था और तब यहाँ के राजा उठकर पास की पहाड़ियों के विजय- गढ़ और माँडा नामक स्थानों में चले गए थे जहाँ अब तक दो शाखाएँ रहती हैं। कंतित के लोग कहा करते हैं कि गहरवारों से पहले यह किला भर राजाओं का था। ऐसा जान पड़ता है कि यह भर शब्द उसी भार-शिव शब्द का अपभ्रंश है और इसकामत- लब उस भर जाति से नहीं है जिसके मिरजापुर और विंध्याचल में शासन होने का कोई प्रमाण नहीं मिलता। यही बात भर देउल 3 १. मुसलमानी काल के कंतित का हाल जानने के लिये देखो A. S. I. २१, पृ. १०८ की पाद-टिप्पणी । २. यहाँ प्रायः सात फुट लंबी सूर्य की एक मूर्ति है जो स्पष्ट रूप से गुप्त काल की जान पड़ती है। श्राज फल यह किले के फाटक के रक्षक भैरव के रूप में पूजी जाती है । ३. A. S. R. खंड २१, प्लेट ३ और ४ जिनका वर्णन पृ० ४- ७ पर है।
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