(६७ ) मथुरा ही जान पड़ती है। कौमुदी महोत्सव में कहा गया है कि कीर्तिषेण सुंदर-वर्मन् का मित्र और कल्याण वर्मन् का ससुर था । यह कल्याण वर्मन् उक्त सुंदर वर्मन् का पुत्र था और इसी ने पाटलिपुत्र पर से चंद्रगुप्त का अधिकार हटाया था। तीसरे भाग में गुप्तों के इतिहास के अंतर्गत इसके समय का विवेचन किया गया है ( ६ १३३ )। उस समय के आधार पर ही कहा गया है कि नागसेन ने केवल चार वर्षों तक और कीर्ति- षेण ने लगभग सन् ३१५ से ३४० ई० तक राज्य किया था। सात पीढ़ियाँ पूरी करने के लिये मथुरा में वीरसेन के बाद तीन और राजा भी हुए ही होंगे। हर्ष-चरित में का नागसेन मथुरा में नहीं बल्कि पद्मावती में राज्य करता था और वह संभवतः गुप्तों के अधीन रहा होगा। उसके पद्मावती के सिक्के नहीं मिलते। अहिच्छत्र वंश के शासन-क्षेत्र का पता एक तो अच्युत सिक्कों से लगता है और दूसरे समुद्रगुप्त के शिलालेख में आए हुए उसके अच्युत के नाम से लगता है। इस लेख का विवेचन आगे तीसरे भाग में किया गया है। उसके सिक्कों पर भी साम्राज्य संबंधी वही चक्र-चिह्न है (C. I. 1. प्लेट २२, ६) जो पद्मावती के देवसेन के सिक्के पर है (C. I. M. प्लेट २, २४)। स्कंदगुप्त के शासन-काल के जो ताम्रलेख इंदौरखेड़ा में मिले हैं और जो अंतर्वेदी के गवर्नर या विषयपति सर्व नाग के खुदवाए हुए हैं (G. I. पृ०७० ), उनके आधार पर मेरा मत है कि अहिच्छत्र वंश का शासन अंतर्वेदी प्रांत में था। मैं यह भी समझता हूँ कि उनकी राजधानी इंद्रपुर ( इंदौरखेड़ा में थी; ब्रह्मांडपुराण में उनकी राजधानी सुरपुर में बतलाई गई है जो इंद्रपुर भी हो सकता है। इसके अतिरिक्त जिस इंदौरखेड़ा नामक
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