(६८ ) स्थान में ये ताम्रलेख पाए गए हैं, वह स्थान भी बहुत प्राचीन है। और इसीलिये इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि उक्त वंश की राजधानी वहीं रही होगी। बहुत कुछ संभावना इसी बात की है कि सर्व नाग भी मत्तिल का एक वंशज था, जिसके संबंध में मैंने आगे तीसरे भाग में विवेचन किया है (६१४०)। उसका राजनगर अंबाले जिले में श्रुघ्न नामक स्थान में या उसके कहीं आस-पास ही रहा होगा। उसके लड़के की मोहर लाहौर में पाई गई है (G. I. पृ० २८२) जो अपने समय में गुप्तों के अधीनस्थ और करद राजा अथवा नौकर की भाँति शासन करता रहा होगा। वायु और ब्रह्मांड पुराण में यह तो कहा गया है कि चंपावती भी एक राजधानी थी, पर वहाँ के शासकों के नामों का अभी तक पता नहीं चला है। ३०. हम यहाँ भार-शिव राजाओं के सिक्कों का विवेचन कर रहे हैं, इसलिये हम एक ऐसे सिक्के पर भी कुछ विचार कर लेना चाहते हैं जो वीरसेन का माना गया प्रवरसेन का सिक्का है, पर जो मेरी समझ में वाकाटक सिक्का जो वीरमेन का माना है और प्रवरसेन प्रथम का है। यह सिक्का भी उसी वर्ग में है जिस वर्ग के सिक्कों का हम विवेचन करते चले आ रहे हैं। यह सिक्का प्राचीन सनातनी हिंदू ढंग का है। इसकी लिपि तो कुशनों के बाद की है और ढंग या शैली गुप्तों से पहले की है। डा० विंसेंट स्मिथ ने इंडियन म्यूजियम के सिक्कों की सूची ( Coins of Indian Museum ) के प्लेट नं० २२ पर चित्र नं० १५ में यह सिक्का दिखलाया है । इस पर की लिपि को उन्होंने व (१) गया है १. देखो इस ग्रंथ में दिया हुया तीसरा प्लेट ।
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