पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/११७

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मङ दसरा। सकती है। किन्सु,इम इस सपर्पपर्ण जगत के जीव है जिसमें कि शून्य मी प्रसिध्वान ऐसा है जहाँ किसी को मेग से फको मारने पर यह ककड़ी मारने वाले को भोर पलटने की चेष्टा करती है । इसलिये, नमें सो यही कहूँगा कि इस मरणासम्म धमटी और दुर्पत कोशज- नरेश का रक्षा आपफो नहीं करनी थी ।" मलिका -"अपना कटुव्य में अच्छी तरह जानती हैं। करुणा की विजय पसाफा के नीचे इमने प्रयाण करने का ६ विचार करके उसफी पश्यता स्वीकार कर ली है। अप एफ पग मी पीछे हटने का प्रमकारा नहीं है। विश्वासी सैनिक के समान नश्वर जीवन का पलिवान करूंगी-फारायण ॥ - फारायण-" तप में जाता हूँ-जैसी इच्छा ।" । मधिका-"ठहरो, मैं तुमसे एफ याव पूछना चाहती हूँ। क्या तुम इम युद्ध में नहीं गये थे। क्या तुमने अपने हायों जान सूझ कर फौशल का पराजय नहीं मोल लिया था ? क्या सच्चे सैनिक के समानही तुम इस रणक्षेत्र में सडेथे। सप भी फोरालनरेश की यह दुर्द गहुई । जब तुम इस लघुसत्य को पालने में असमर्थ दए तप तुममे भौर महान स्वार्थत्याग की क्या भाशा की जाय ! समे विश्वास है कि यदि कोशल की सेना अपने सत्य पर रहती वो यह दुसद घटना न होने पायी । कारायण-"इसमें मेरा क्या अपराध है ? जैमी सप फी, पिसी ही मेरी भी इच्छा थी। (सी में से पापन पसेरमित निमता) HH